#Onward Onward & Onward Sufferings
Almighty knows the end of Pandemic.!!
My Meaningful Poem...!!!
यारों शमशीर हाथ में अपाहिज-सी है
जब तक जिस्मानी ताक़त से वार न बने
इन्सानोंके बने उपकरण भी बेजान है
जब तक विधुत-प्रसरण-संचार न बने
बागों में खीलें फ़ुल भी नष्ट ही होना है
जब तक फ़ुल भँवरोका रसपान ना बने
बहतीं नदियोंका मिलन दरिया से तय है
जब तक बादलों-ग़रज़से बारिश ना बने
हर अँधेरी शब उजियारा सवेरा लाती है
जब तक रातकी तन्हाई भक्तिरस न बने
जलती शमादान पिघलनेके लिए बनी हैं
जब तक मुशायरा शेर-पढ़न दाद न बने
रबके बने माटींके ढाँचे भी बस जिस्म है
जब तक प्रभु-कीर्तन भी दिनचर्या ना बने
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