मेरा खोया हुआ शहर…
मेरा वो शहर—
जहाँ मैंने अपनी थकी हुई रूह को
पहली बार चैन से बसाया था,
जहाँ हर गली मेरे सपनों की
धड़कन-सी लगती थी।
पर एक दिन…
क़िस्मत ने हाथ पकड़कर
मुझे वहीं लौटा दिया
जहाँ से मैंने भागकर
नई ज़िंदगी खोजी थी।
आज भी रातों की ख़ामोशी में
वो शहर मेरी पलकों पर
धुंध की तरह उतर आता है—
वही शहर,
जिसे मैंने अपने कल की नींव बनाया था।
शहर छूटा…
तो सपने भी मौसम की बदली हवा की तरह
बिखर गए।
और आज भी दिल में
एक अधूरी सी टीस उठती है—
काश…
वो शहर सचमुच मेरा होता।