Quotes by Deepak Bundela Arymoulik in Bitesapp read free

Deepak Bundela Arymoulik

Deepak Bundela Arymoulik Matrubharti Verified

@deepakbundela7179
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स्टेटस में आग,
प्रोफाइल में क्रांति,
और ज़िंदगी सामने आए
तो आवाज़ गले में मर जाती है।

मोहब्बत अगर मिल जाए
तो वही ज़िंदगी बना देते हैं—
उसी के लिए सपने, शब्द, वादे,
पूरी कायनात लिख डालते हैं।

और जब मोहब्बत टूटती है
तो दर्द बहाने के लिए
पूरी टाइमलाइन छोटी पड़ जाती है,
हर पोस्ट एक आँसू बन जाती है।

पर जब समाज का दिल टूटता है,
जब हक़ कुचले जाते हैं,
तब ये लोग नेटवर्क खोजते हैं,
तब रीच ज़्यादा ज़रूरी हो जाती है।

दिल टूटा तो शायर,
हक़ टूटा तो दर्शक—
ये वही कलमें हैं
जो अपने दर्द पर चीखती हैं
और दूसरों के दर्द पर
म्यूट हो जाती हैं।

मोहब्बत ने इन्हें जिंदा रखा,
डर ने इन्हें मरा हुआ।
सोशल मीडिया पर साँसें,
असल ज़िंदगी में ज़िंदा लाश।

जो अपने लिए नहीं बोले,
जो सच के लिए नहीं जले—
वो दिशा नहीं देते,
वो बस ट्रेंड के पीछे
खुद को घसीटते हैं।

आर्यमौलिक

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आज सोशल मीडिया पर लेखकों के लिए उपलब्ध अधिकांश ऐप्स, लेखन के हर रूप से केवल अपनी कमाई निकालने में लगे हुए हैं। विडंबना यह है कि वर्षों से मौजूद लेखकों की रचनाएँ भी अब प्रीमियम के बिना सीमित कर दी जाती हैं।

मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि 7–8 वर्ष पहले, जब मैंने Kuku FM, Quotes और Matrubharti जैसे प्लेटफॉर्म जॉइन किए थे, तब इनका रवैया बिल्कुल अलग था। उस समय बिना किसी प्रीमियम के कहानियाँ, कविताएँ और कोट्स प्रकाशित किए जा सकते थे। ऐप संचालक विज्ञापनों से आय अर्जित करते थे और लेखकों को कम से कम स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अवसर मिलता था।

आज स्थिति यह है कि नए और पुराने लेखकों में कोई अंतर नहीं किया जाता। वर्षों की साधना और अनुभव रखने वाले लेखक और आज आए नए लेखक—दोनों को एक ही पंक्ति में खड़ा कर दिया गया है। यह व्यवहार न तो न्यायसंगत है और न ही स्वीकार्य।

सच यह है कि लेखकों के बिना ये ऐप्स अस्तित्व में ही नहीं रह सकते, फिर भी लेखक सबसे उपेक्षित वर्ग बना हुआ है। यदि ऐप संचालक चाहें तो कम से कम लेखक की पोस्ट पर मिलने वाले लाइक, कमेंट और रीड्स के आधार पर प्रोत्साहन या पारदर्शी लाभ-साझेदारी तो दे ही सकते हैं—पर ऐसा कहीं देखने को नहीं मिलता।

यहाँ शब्दों और साहित्य से अधिक प्राथमिकता ऐप संचालकों की कमाई को दी जाती है। लेखक खुश हो जाता है यह देखकर कि आज उसकी पोस्ट पर इतने लाइक और कमेंट आ गए, लेकिन सच्चाई यह है कि न लाइक से लोकप्रियता मिलती है, न उससे कोई वास्तविक आमदनी होती है।

कई प्लेटफॉर्म पर दिखाया जाने वाला कुल लाइक और व्यूज़ का आँकड़ा भी अक्सर कंप्यूटर-जनित और पूर्व-नियोजित खेल मात्र होता है, जिसके सहारे लेखकों को यह भ्रम दिया जाता है कि वे आगे बढ़ रहे हैं—जबकि वास्तविक लाभ कोई और ही उठा रहा होता है।

अंततः यह सब लेखकों की स्वयं की चेतना और सोच पर निर्भर करता है।
क्योंकि यदि आपकी मेहनत की कमाई कोई दूसरा खा रहा है और आप केवल लाइक-ग्राफ में उलझे हुए हैं, तो आप अपनी सबसे कीमती पूँजी—समय और प्रतिभा—दोनों व्यर्थ कर रहे हैं।

अब निर्णय आपको करना है—
सिर्फ दिखावे की सराहना चाहिए या अपने लेखन का वास्तविक सम्मान।
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भगवत गीता जीवन अमृत

https://arymoulikdb1976.blogspot.com/2025/12/8.html

-आदमी आदमी के बगैर

आदमी आदमी के बगैर
अधूरा सा रह जाता है,
जैसे बिना दीप बाती
अंधेरा मुस्काता है।

कदम बढ़ते हैं तो साथ चाहिए,
सपनों को भी हाथ चाहिए,
एक हाथ से जीवन चलता नहीं,
हर मंज़िल को साथ चाहिए।

किसान की मेहनत, मज़दूर का पसीना,
शिक्षक का ज्ञान, माँ की करुणा,
हर रिश्ता, हर श्रम, हर भावना
आदमी से आदमी की साधना।

कोई राजा हो या हो फकीर,
सबकी राहें जुड़ी हुई हैं,
बगैर आदमी के आदमी की
तक़दीरें टूटी हुई हैं।

इसलिए न घमंड, न दूरी रख,
इंसान से इंसान जुड़ा रह,
क्योंकि इस दुनिया की सबसे बड़ी
पूँजी — आदमी का आदमी है।

आर्यमौलिक

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सब लेखक है

यहाँ हर कोई शायर है,
हर कोई कवि, हर कोई लेखक—
हर उँगली में दर्द टंगा है,
हर लफ़्ज़ खुद को सच समझता है।

सबके पास कहानियाँ हैं,
सबके पास ज़ख़्मों का ढेर,
पर सुनने की फुर्सत किसी को नहीं,
क्योंकि हर कोई बोलने में मशगूल है यहाँ।

यहाँ दर्द भी अब प्रतियोगिता है—
किसका ग़म ज़्यादा गहरा,
किसकी पीड़ा ज़्यादा वायरल,
किसकी पंक्तियाँ ज़्यादा बिकाऊ।

काग़ज़ पर नहीं,
अब दर्द स्क्रीन पर बहता है,
चार तालियाँ, दस लाइक,
और आत्मा खुद को महान समझ बैठती है।

हर कोई मंच पर खड़ा है,
पर भीड़ में बैठने को कोई तैयार नहीं,
सब अपनी-अपनी चीख़ें सुना रहे हैं,
पर ख़ामोशी सुनने वाला कोई नहीं।

किताबें छपती हैं,
पर पढ़ी नहीं जातीं—
क्योंकि यहाँ लिखना आसान है,
और पढ़ना सबसे कठिन तपस्या।

यह दौर शब्दों का नहीं,
अहंकारों का है,
यहाँ हर लेखक अमर होना चाहता है,
पर पाठक बनने से सबको डर लगता है।

सच यही है—
इस भीड़ में लेखक बहुत हैं,
कवि अनगिनत हैं,
पर पढ़ने वाला इंसान
सबसे दुर्लभ प्रजाति बन चुका है।

आर्यमौलिक

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मोहब्बत करने वाले

ये मोहब्बत करने वालों को भी सुकून नहीं है,
ये औरों को भी सुकून से रहने नहीं देते हैं।

ख़ुद जलते हैं हर रात यादों की आँच में,
और अपने उजाले से दूसरों को सोने नहीं देते हैं।

इनकी आँखों में ख़्वाब हैं, पर नींद ग़ायब है,
दिल भरा हुआ है, फिर भी चैन नहीं नसीब है।
जो पा लें, उन्हें भी डर सताता है खोने का,
जो खो दें, वो उम्र भर किसी और के होने नहीं देते हैं।

मोहब्बत एक इबादत है, ये कहते तो सब हैं,
पर इस इबादत में सब्र का हुनर कम ही रब देता है।
कभी हँसी चुरा लेती है बेगुनाह चेहरों से,
कभी आँसू छुपाने का हक़ भी नहीं देती है।

अजीब सा दस्तूर है इस इश्क़ के शहर का,
यहाँ दिल तो लगते हैं, पर दिल से रहने नहीं देते हैं।

आर्यमौलिक

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तेरे जाने के बाद फ़िज़ा कितनी सूनी लगी,
जैसे शहर में हर गली बेआवाज़ हो गई।

वो पढ़ लेता है मेरी तहरीर का सुकूत भी,
जिसे समझ आ जाए ज़रा सा एहसास-ए-अल्फ़ाज़।

ये इश्क़ है साहब,
इसमें ज़िन्दगी का
रिस्क लेना पड़ता है—

यहाँ दिल गिरवी रखना होता है,
ख़्वाबों पर दस्तख़त करने पड़ते हैं,
और भरोसे की आग में
अपने डर को जलाना पड़ता है।

ये इश्क़ है साहब,
यह कोई सुरक्षित सौदा नहीं,
यहाँ जीत से ज़्यादा
हार की हिम्मत चाहिए।

कभी मुस्कान की बारिश मिलती है,
कभी तन्हाई की लम्बी रातें,
कभी सब कुछ मिल जाता है,
कभी खुद को ही खोना पड़ता है।

ये इश्क़ है साहब,
यह अक़्ल से नहीं चलता,
यह तो बस दिल की ज़िद है,
जो हर बार टूटकर भी
फिर से भरोसा करना सिखा देती है।

आर्यमौलिक
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खुद के ही शोर में तुम इतने बेहरे हो गए,
कि मेरी चीख भी तुम सुन न सके…

मैंने खामोशी में भी तुम्हें पुकारा था,
हर साँस में तुम्हारा ही नाम उतारा था।
मगर तुम्हारी आवाज़ों की भीड़ इतनी भारी थी,
कि मेरी तन्हाई तुम्हें बोझ लगने लगी थी।

मैं टूटी हुई बातों से सच कहती रही,
तुम अपने सच को ही पूरा सच समझते रहे।
मेरी आँखों में जो डर था, जो सवाल था,
वो तुम्हें दिखा नहीं, या दिखना तुम्हें गवारा न था।

तुम्हारे अपने शोर ने तुम्हें इतना दूर कर दिया,
कि पास होकर भी तुमने मुझे अनसुना कर दिया।
और अब जब मैं चुप हूँ, तो सुकून सा लगता है तुम्हें,
क्योंकि अब कोई चीख नहीं है, जो आईना दिखा सके तुम्हें।

खुद के ही शोर में तुम इतने बेहरे हो गए,
कि टूटते हुए दिल की आहट भी तुम सुन न सके…

आर्यमौलिक

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