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Deepak Bundela Arymoulik

Deepak Bundela Arymoulik Matrubharti Verified

@deepakbundela7179
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कविता:-

"राम! तुम कब अयोध्या आओगे?”
राजा दसरथ जी का विलाप
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अब थकने लगे हैं ये नयना,
अब टूटने लगे हैं ये मनना।
हर श्वास बने बस राम तेरा,
हर धड़कन पुकारे नाम तेरा।
बचपन तेरे खेल स्मरण में,
तेरा हँसना बस चित्रण में।
कैसे भूलूँ वो प्यारा चेहरा,
कैसे सहूँ ये बिछोह गहरा।
वन की घटा मुझे डराती,
तेरी काया मन में समाती।
क्या तू भूखा, प्यासा होगा?
क्या धरती पर सोता होगा?
हे पुत्र! पिता का हृदय व्याकुल,
तेरे बिना यह जीवन शिथिल।
सुख–वैभव सब शून्य लगे हैं,
बस आँखों में आँसू बहे हैं।
अब लगता है दीप बुझेगा,
ये जीवन श्वास रुकेगा।
तेरे बिन मुझसे न सहा जाए,
यह प्राण–पक्षी अब उड़े जाए।
मरण समीप खड़ा मुस्काए,
कहता मुझसे—“चल, घर आए।”
पर मैं अब भी तुझको पुकारूँ—
"राम! कब लौटेगा, बता तू?”

और अंत में…

दशरथ का विलाप थम जाता,
राम का नाम ही श्वास बन जाता।
नयन बंद हो जाते अंतिम क्षण में,
राम की छवि बसी हृदय–नयन में।
सुनते हैं देव भी मौन हुए,
जब दशरथ राम का नाम लिए।
अयोध्या रो पड़ी, दिशा रोई,
राम वियोग में प्राण खोई।
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DB-ARYMOULIK

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तन्हा जहन की दास्तान

तन्हा जहन में हर रोज़ एक कहानी बनती है,
सन्नाटे की स्याही से, दर्द की निशानी बनती है।
कोई सुनने वाला नहीं, कोई समझने वाला नहीं,
बस आंसुओं से भीगी एक जुबानी बनती है।

रात ढलती है तो ख़्वाबों का क़त्ल होता है,
नींद के सफ़हे पर सन्नाटा दफ़्न होता है।
हर तारा जैसे टूटा हुआ अफ़साना लगे,
हर चांद अधूरी मोहब्बत का बहाना लगे।

ये जहन भी क्या अजीब क़िताब है,
हर पन्ना अधूरा, हर जुमला लापता है।
लिखता हूँ मगर लफ़्ज़ साथ नहीं देते,
जख़्मों के किस्से भी अब बात नहीं करते।

कभी सोचा था ये दर्द मिट जाएगा,
इन तन्हाइयों का मौसम कट जाएगा।
मगर जितना भागूं, उतना ही पास आता है,
यह जहन मेरी रूह को और रुलाता है।

फिर भी…
इस वीराने की गोद में कहानी पनपती है,
हर टूटन से एक नई तहरीर बनती है।
शायद यही दर्द एक दिन ग़ज़ल हो जाएगा,
तन्हा जहन भी किसी का सहारा बन जाएगा।

DB-ARYMOULIK

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मोहब्बत के बदलते रंग

अब मोहब्बत को सादगी पसंद नहीं,
हर एहसास पर अब शोर चाहिए,
नज़रों में छुपा दर्द कोई समझे कहाँ,
आज तो रिश्तों को भी मंच और दौर चाहिए।

हुई मोहब्बत सरे आम, वो अब ख़तों में बंद नहीं,
इज़हार के लिए सोशल की दुनिया चाहिए,
दिल की धड़कनें जो कभी लफ्ज़ों में उतरती थीं,
अब उन्हें ताली और लाइक्स का सहारा चाहिए।

कभी परछाइयों में मिलना भी इबादत थी,
कभी एक ख़त पर सारी रात गुज़ार देते थे,
आज हर लम्हा तस्वीरों में कैद हो रहा,
और हम यादों के बजाए स्क्रीन पर निहारते हैं।

सच है, मोहब्बत बदली है ज़माने संग,
पर वो मासूमियत कहाँ, वो इंतज़ार कहाँ,
अब तो मोहब्बत भी सजधज कर चलती है,
दिल के दर्द को भी चाहिए "दर्शक" जहाँ।

DB-ARYMOULIK

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चुप्पी

हज़ारों लफ़्ज़ उमड़ते हैं,
पर होंठों तक आते ही ठहर जाते हैं,
दिल की गलियों में गूंजते सुर,
दुनिया के शोर में खो जाते हैं।

नज़रों में चमक, चेहरे पे हंसी,
पर भीतर कहीं तूफ़ान छिपा होता है,
जो कह न सका, वही बोझ बनकर,
रातों की नींद चुरा लेता है।

कितनी बार चाहा बोल पड़ें,
कितनी बार चाहा हाथ थाम लें,
पर डर है—कहीं ठुकरा दिए गए तो?
यही सोचकर फिर से चुप रह लें।

लोग समझते हैं—ये खामोश हैं,
पर ये खामोशी भी एक कहानी है,
दिल की गहराई से निकली पुकार,
जो कभी किसी तक नहीं पहुँच पाती है।

यूँ ही हज़ारों चेहरे के बीच,
अपना ही साया बनकर रह जाते हैं,
जो कह न सके दिल की बातें,
वो ज़िंदगी भर चुपचाप जी जाते हैं।

पर एक सच ये भी है—
जो दिल की बात कहने का साहस कर लेता है,
वो अपने अकेलेपन को तोड़ देता है।
हर खामोशी के पीछे एक रिश्ता छिपा होता है,
बस ज़रूरत है पहला शब्द कह देने की।

क्योंकि अक्सर सामने वाला भी
यही सोचता रह जाता है—
काश… वो कह देता!

DB-ARYMOULIK

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मेहनतकश इंसान

सुबह की किरण संग उठ जाता है,
सपनों को हथेली पर रख घर से निकल जाता है।
पसीने की हर बूंद में चमकती आस,
मेहनत से ही बुझती है जीवन की प्यास।

धरती जोतता, ईंट गढ़ता,
रोज़ नए सपनों को आकार करता।
उसके हाथ भले खुरदरे सही,
पर दिल में उजले इरादे वही।

धूप की तपिश हो या सर्दी की मार,
कभी न रुकता उसका संघर्ष अपार।
राह कठिन हो, बोझ भले भारी,
हिम्मत उसकी कभी न हारी।

न नाम की चाह, न शोहरत का गुमान,
बस मेहनत ही उसका सच्चा ईमान।
उसकी थकन में भी चमकता उजाला,
मेहनतकश इंसान ही है जग को सहारा।

DB-ARYMOULIK

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मैं सोचता था..!

मैं सोचता था भलाई लौटेगी भलाई बनकर,
अगर मैं चमकूँ तो आएँगे साथी बस अपनेपन से जुड़कर।

पर जीवन न्याय का खेल नहीं,
जैसे प्रकृति कभी सम नहीं।
रोशनी बुलाती है राहगीर को भी, भेड़िए को भी,
कोमल दिलों को भी, भूखी दरिंदगी को भी।

तभी सीखा मैंने पहचान का हुनर,
साए जब घेरें तो लौ को ढक लेना,
और जब वक्त पुकारे, तो धधक कर जल जाना,
कभी अंधेरों में ठहर जाना।

फिर भी मैंने चमकना चुना—
क्योंकि रोशनी ही मेरी पहचान है।
चाहे डगमगाए, चाहे छिप जाए,
यह लौ मेरी है, यह प्रकाश मेरा है।

DB-ARYMOULIK

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“सामान्य" का भ्रम

हम सब दौड़ते हैं पीछे—
उस आकार के, जिसे कहते हैं “सामान्य”।
पर वो है बस एक छाया,
बिना चेहरा, बिना रंग,
एक मुखौटा—
जिसे दुनिया ने गढ़ा,
ताकि भीतर की खिलती रौशनी को छुपाया जा सके।

पर सुनो—
हम तो बने हैं तारों की धूल से,
हमारी रगों में है अनोखे रंगों की धार।
हमें भेजा ही गया है सीमाएँ तोड़ने को,
न कि सिकुड़ कर एक साँचे में समाने को।

तो क्यों बेचें अपनी उड़ान,
सिर्फ़ चुप्पी के बदले?
क्यों बुझाएँ अपनी आग,
सिर्फ़ मेल खाने के लिए?
हर दाग़ है कहानी,
हर चोट है कविता,
हर धड़कन—
हमारा नाम पुकारती है!

उन्हें रहने दो,
अपने छोटे, सुरक्षित घेरे में।
उन्हें दोहराने दो वही साधारण बातें।
क्योंकि हम…
हम तो नदियाँ हैं—
बेहिसाब, बेकाबू, अनंत!
हम रेंगने के लिए पैदा नहीं हुए।

आओ उठें—
पूरी शान में,
पूरी चमक में,
बिना शर्म, बिना डर!
क्योंकि “सामान्य” है एक झूठी कहानी,
और सच्चा जादू—
हम ही हैं।

डीबी-आर्यमौलिक

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सुकून की तलाश में

शहर की भीड़ में, शोर में,
हर कोई उलझा है किसी दौड़ में।
कदम रुकते नहीं, साँस थमती नहीं,
दिल को चाहिए बस ठहराव कहीं।

सुकून की तलाश में निकलता हूँ रोज़,
कभी किताबों के पन्नों में, कभी खुद की सोच।
कभी समंदर की लहरों से बातें करता हूँ,
कभी चाँद की चुप्पी में अपनी थकान उतारता हूँ।

पेड़ों की छाँव में जब हवा सरसराती है,
मन की बेचैनी जैसे गीत गुनगुनाती है।
एक कप चाय, एक खुला आँगन,
यही तो है असली जन्नत का दामन।

सुकून बाज़ार में बिकता नहीं,
ये तो दिल के भीतर ही मिलता कहीं।
जहाँ लोभ न हो, जहाँ दिखावा न हो,
बस अपनापन और सच्चाई का बसेरा हो।

आख़िर समझ आया—
सुकून की तलाश बाहर नहीं,
ये तो अपने ही भीतर की रोशनी है।
जब मन का आईना साफ़ हो जाए,
तभी असली सुकून हाथ आए।

DB-arymoulik

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चाँदनी में तुमने आकर जो दिये थे कुछ सबूत,
वो क़सम, वो वादा, अब तलक़ अफ़साना याद है।

छुपके देखी थी जो आँखों ने तेरी रौशनी,
साल बीतें हैं मगर अब तक वो तराना याद है।

तेरे साए में गुज़ारे थे जो दो पल ख़ामोश,
वो ख़मोशी, वो ठहराव, अब भी जमाना याद है।

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इंतज़ार उसका करो, जो समझे एहसास,
जिसके लिए आपकी धड़कन हो खास।

भीड़ में भी जो आपका नाम पढ़ ले,
सन्नाटे में भी आपकी आवाज़ सुन ले।

मिलना ही मोहब्बत नहीं, ये भी हक़ीक़त है,
सच्चा इंतज़ार ही इश्क़ की सच्ची इबादत है।
DB-ARYMOULIK

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