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Deepak Bundela Arymoulik

Deepak Bundela Arymoulik Matrubharti Verified

@deepakbundela7179
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"व्रज रज"
विष्णुजी के व्रज में कृष्ण रूप में अवतार लेने की बात जब देवताओ को पता लगी, तो सभी बाल कृष्ण की लीला के साक्षी बनने को लालायित हो गए। देवताओं ने व्रज में कोई ग्वाला, कोई गोपी, कोई गाय, कोई मोर तो कोई तोते के रूप में जन्म ले लिया। कुछ देवता और ऋषि रह गए। वे सभी ब्रह्माजी के पास आये और कहने लगे कि ब्रह्मदेव आप ने हमें व्रज में क्यों नही भेजा? आप कुछ भी करिए, किसी भी रूप में भेजिए।

ब्रह्मा जी बोले व्रज में जितने लोगों को भेजना संभव था उतने लोगों को भेज दिया है। अब व्रज में कोई भी जगह खाली नहीं बची है। देवताओं ने अनुरोध किया प्रभु आप हमें ग्वाले ही बना दें। ब्रह्माजी बोले जितने लोगों को बनाना था उतनों को बना दिया। और ग्वाले नहीं बना सकते। देवता बोले प्रभु ग्वाले नहीं बना सकते तो हमें बरसाने को गोपियाँ ही बना दें। ब्रह्माजी बोले, अब गोपियों की भी जगह खाली नही है। देवता बोले गोपी नहीं बना सकते, ग्वाला नहीं बना सकते तो आप हमें गायें ही बना दें। ब्रह्माजी बोले गाएँ भी खूब बना दी हैं। अकेले नन्द बाबा के पास नौ लाख गाएँ हैं। अब और गाएँ नहीं बना सकते। देवता बोले प्रभु चलो मोर ही बना दें। नाच-नाच कर कान्हा को रिझाया करेंगे। ब्रह्माजी बोले मोर भी खूब बना दिए। इतने मोर बना दिए की व्रज में समा नहीं पा रहे। उनके लिए अलग से मोर कुटी बनानी पड़ी। देवता बोले तो कोई तोता, मैना, चिड़िया, कबूतर, बंदर कुछ भी बना दीजिए। ब्रह्माजी बोले वो भी खूब बना दिए। पुरे पेड़ भरे हुए हैं पक्षियों से। देवता बोले तो कोई पेड़-पौधा, लता-पता ही बना दें। ब्रह्मा जी बोले पेड़-पौधे, लता-पता भी मैंने इतने बना दिए कि सूर्यदेव मुझसे रुष्ट हैं। उनकी किरनें भी बड़ी कठिनाई से व्रज की धरती को स्पर्श करती हैं। देवता बोले प्रभु कोई तो जगह दें। हमें भी व्रज में भेजिए। ब्रह्मा जी बोले कोई जगह खाली नही है। तब देवताओ ने हाथ जोड़ कर ब्रह्माजी से कहा प्रभु अगर हम कोई जगह अपने लिए ढूँढ़ के ले आएँ तो आप हम को व्रज में भेज देंगे? ब्रह्मा जी बोले हाँ तुम अपने लिए कोई जगह ढूँढ़ के ले आओगे तो मैं तुम्हें व्रज में भेज दूंगा। देवताओ ने कहा धूल और रेत कणों की तो कोई सीमा नहीं हो सकती। और कुछ नहीं तो बालकृष्ण लल्ला के चरण पड़ने से ही हमारा कल्याण हो जाएगा। हम को व्रज में धूल रेत ही बना दें।
ब्रह्मा जी ने उनकी बात मान ली। इसलिए जब भी व्रज जाये तो धूल और रेत से क्षमा मांग कर अपना पैर धरती पर रखें। क्योंकि व्रज की रेत भी सामान्य नही है। वो रज तो देवी देवता, ऋषि-मुनि हैं।

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**बचपन में बड़ा होना**

लोग पूछते हैं – *“तुम्हें कब एहसास हुआ कि तुम बड़े हो गए?”*
मैं मुस्कुरा देता हूँ।
क्योंकि मेरा उत्तर किताबों में नहीं, ज़िन्दगी के पन्नों में लिखा है।

घर में जो बच्चा बड़ा कहलाता है – वह उम्र से पहले ही बड़ा हो जाता है।
जब मां-बाप की अनुपस्थिति में छोटे भाई को खाना खिलाना पड़ता है…
जब बहन के टूटे खिलौने को चुपचाप जोड़ना पड़ता है…
जब अपने हिस्से की मिठाई छोड़कर छोटे के हिस्से में डालनी पड़ती है…
तो समझ लो – बचपन का एक कोना वहीं खो गया।

हमारे लिए स्कूल की छुट्टियाँ सिर्फ खेल और कहानी नहीं थीं,
वे जिम्मेदारियों के अध्याय थे –
छोटों को होमवर्क कराना, उनकी लड़ाई में पंच बनना,
और घर में आने वाले हर मेहमान के लिए पानी और मुस्कान लाना।

जो भाई-बहन सदा सबसे बड़े कहलाते हैं,
वे समझ जाते हैं कि बचपन उनके लिए सिर्फ उम्र का नाम है।
दिल में उनका चश्मा जल्दी लग जाता है –
जो दूर के सपनों से पहले पास की जिम्मेदारियाँ देखता है।

हम बड़े नहीं होते…
हमें बड़ा बना दिया जाता है –
उस दिन से, जब परिवार हमें *“छोटों को संभालो”* कह देता है।

आर्यमौलिक

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**कभी सवारे थे कुछ शब्द**

कभी सवारे थे कुछ शब्द,
तेरी आँखों की रोशनी में नहाए हुए,
तेरे हाथों की नरम गर्मी में पिघलते हुए।
हर लफ़्ज़ में हमारी साँस की तुक थी,
हर विराम में मिलन की धीमी मुस्कान।

तेरे और मेरे बीच,
वो शब्द फूलों की तरह खिलते थे—
चाय की भाप में घुलकर,
बारिश की बूंदों में चमकते थे।

फिर मौसम पलटा…
कहीं वक़्त की आहट आई,
कहीं चुप्पी ने ठिकाना बना लिया।
वो सजाए हुए अक्षर
गिरते चले गए—
जैसे पतझड़ में पत्तों की आख़िरी सरसराहट।

अब उन पर धूल जमी है,
कोई स्याही उन्हें छूने से डरती है।
तेरी आवाज़ का संगीत
सिर्फ़ याद में बजता है,
असल में सब बिखर चुका है।

कभी सवारे थे कुछ शब्द—
आज वे प्रेम की छाँव में नहीं,
बस स्मृतियों की खिड़की पर बैठे हैं,
ताकते हुए एक पुराने दृश्य को,
जहाँ मैं था… और तू भी थी,
और हमारे बीच,
वो चुपचाप खिली हुई कविता थी।

आर्यमौलिक

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**किराए की मोहब्बत का कैफ़े**

अब शहर में नया धंधा खुला है —
ना चाय की टपरी, ना किताबों का नुक्कड़,
यहाँ खुलेआम बिकती हैं बाँहें,
और मुस्कानें मिलती हैं “ऑफ़र पर”।
काउंटर पर लड़की पूछती है —
“सर, साइलेंट हग लेंगे या सॉफ्ट कडल?”
और ग्राहक चश्मा ठीक करते हुए कहता है,
“देखो, पैकेज छोटा रखो, वाइफ़ कॉल कर सकती है।”
मोहब्बत अब मापी जाती है मिनटों में,
गले लगना भी जीएसटी के साथ आता है,
फरवरी के महीने में डिस्काउंट बढ़ जाता है,
और दिल का कारोबार फिर से चमक उठता है।
कितनी सुविधा हो गई है न दोस्तों,
अब दिल टूटने का डर भी नहीं,
चुकाओ पैसे — लो मुस्कान — जाओ घर,
ना वादे, ना ड्रामे, ना भावनाओं का झंझट कहीं!
बस अफ़सोस इतना है कि
स्पर्श तो असली है, पर सुकून नक़ली,
बातें प्यारी हैं, पर आवाज़ रटी हुई,
और जो दिल कभी धड़कता था स्वतः,
अब ऐप से बुक होता है आधे घंटे की ड्यूटी पर।
शायद कल को यह भी आएगा —
“सदस्यता पैकेज” —
गोल्ड में मिलेंगे आँसू पोंछने के सत्र,
और प्लेटिनम में सुबह-शाम की झप्पियाँ मुफ्त!
वाह रे आधुनिक मनुष्य,
तूने भावनाओं को भी शेयर मार्केट बना दिया,
अब प्रेम नहीं किया जाता,
बस *स्वाइप* कर लिया जाता है।
ये आधुनिक समाज
किस टाइप का हुआ जा रहा हैं..?

आर्यमौलिक

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***अगर तुम इश्क हो***

तुम अगर हवा हो
मेरे शब्द रुई के फाहे हैं
छूकर बह जाओ
तुम अगर स्मृति हो
पेड़ की सूखी शाख से
टूटा कोई पत्ता
या मेरे आँगन में
ठहरी हुई छाया
रख दो मेरी चौखट पर
ये बनी हुई है सपनों की धुन से
और मैं बुना हूँ तुम्हारी प्रतीक्षा से
तुम अगर प्रेम हो
बरसात की कोई बूँद
या रात का चमकता आंसू
टपको
टपको
मेरी आत्मा पर
ये मिट्टी का बना हुआ है
और तुम्हें सोख लेने को आतुर है

आर्यमौलिक

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#मातृभारती
मातृ भारती पर प्रकाशित की गयी पोस्ट अभी तक पब्लिश नहीं हो पा रही हैं, कई sms किए लेकिन कोई सहयोगात्मक जवाब मातृभारती की ओर से नहीं मिल रहा हैं. कृप्या इस परेशानी का समाधान करे
- Deepak Bundela Arymoulik

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आज प्रेम ने फिर जन्म लिया,
न किसी मंदिर में, न किसी महफ़िल में—
बस एक टूटे हुए दिल की धड़कनों के बीच।
हमने मोमबत्ती नहीं जलाई,
क्योंकि आज हवा बहुत ईमानदार थी।
उसने कहा—“सच्चा प्रेम जलता नहीं, जलाता है।”
तो हमने अपनी आत्मा के कोनों में
थोड़ी-थोड़ी रौशनी बाँट दी।
आज हम हर राहगीर को देख मुस्कुराएँगे,
भले ही आँखों में झील-सी नमी क्यों न हो।
हर सूखे पत्ते से कहेंगे—
“तुम भी किसी वक़्त किसी शाख़ का सपना थे।”
हर थकी हुई बयार को
अपना कंधा देंगे ठहरने को।
आज प्रेम का जन्म-दिन है,
और हम इसे मनाएँगे —
चुप रहकर, टूटकर, फिर सँवरकर।
हम रोने की कला में निपुण हो चुके हैं अब;
हर आँसू हमें भीतर और गहरा बनाता है।
कल शायद हम फिर वही होंगे —
भीड़ में एक चेहरा,
मगर आज,
हम वो दीवाने हैं
जो तन्हाई को भी सलाम करते हैं।
क्योंकि हमें मालूम है—
प्रेम का एक दिन नहीं होता,
वह हर उस घड़ी जन्म लेता है
जब कोई दिल,
दुख के बावजूद भी मुस्कुराता है।

आर्यमौलिक

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सोचता हूं एक किताब लिख दूं,
इक अंजानी मोहब्बत का साथ लिख दूं।
हर पन्ने- पन्ने पर उसकी याद लिख दूं,
हर लफ़्ज़ में उसके एहसास लिख दूं।
ख़ामोशियां जो कह न सका ज़ुबां से कभी,
वो सब इस दास्तान में साफ़-साफ़ लिख दूं।

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हर मन में भक्ति का व्यापार जन्मा है।

जो भक्ति थी—अब ब्रांड हो गई,
जो आस्था थी—अब इंस्टाग्राम पर ट्रेंड है।
हर आरती के पीछे स्पॉन्सर लिखा है,
हर मंदिर के बाहर ‘क्यूआर कोड’ झिलमिलाता है।

लोग मुझे खोजने आए हैं,
पर मन में नहीं, मॉल में।
किसी के पास सेल्फी है,
किसी के पास सेल्स टार्गेट।

मैं मुस्कराता हूँ—
क्योंकि जानता हूँ,
जिस दिन वे सच्ची श्रद्धा से
भीतर झाँकेंगे,
उन्हें मुझसे मिलने टिकट नहीं लगेगा,
न दान-पेटी खुलेगी।

धर्म का अर्थ मैंने सिखाया था—
*“कर्तव्य, करुणा और सत्य।”*
पर अब वही तीन शब्द
पैकेट में बंद हैं, कीमत लगी है।

फिर भी मैं प्रतीक्षा में हूँ—
क्योंकि जानता हूँ,
एक सच्चा हृदय अभी भी कहीं है,
जो बिना दिखावे के
बस प्रेम से “कृष्ण” कहेगा—
और मैं वहीं पुकार सुन लूँगा।

आर्यमौलिक

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