वो कहते हैं— मिलने आओगे मुझसे…?
हम कहते हैं— क्या सच में वक़्त निकाल पाओगे मेरे लिए…?
वो कहते हैं— आख़िरी दफ़ा आऊँगी क्या…?
हम कहते हैं— पहली दफ़ा आए ही कब थे आप, जो आख़िरी की बात करते हो…?
वो कहते हैं— याद रखोगी मुझे…?
हम कहते हैं— भुलाया ही कब है आपको… दिल से उतरे ही कब थे…?
वो कहते हैं— इस बार दिल से मिलोगे…?
हम कहते हैं— दिल तो पहले दिन से आपका ही था, बस आपने देखा नहीं…
वो कहते हैं— शायद देर हो गई आने में…?
हम कहते हैं— देर तो तब होती है जब कोई इंतज़ार छोड़ दे… हमने तो आज भी वही जगह संभालकर रखी है…
और अब… जब आख़िरी दफ़ा आ ही गई हूँ—
तो क्या हमेशा साथ रख पाओगे हमें… अपने…?