“प्रेरणा-पुरुष अशोक जी”
रामजन्मभूमि के प्रहरी, धर्म-ज्योति के दीप,
आपके संकल्पों से जागे, सोए हुए अनूप।
त्याग और तप की छाया में, खड़ा हुआ अभियान,
आपके बल से जग में गूँजा, भारत का सम्मान।।
श्वेत-वसन में संन्यासी, पर भीतर ज्वाला प्रखर,
राष्ट्रभक्ति की धारा बनकर, बहते रहे अमर।
हिंदू समाज के पथ-प्रदर्शक, धर्म के प्रहरी आप,
आपके संग उठ खड़ा हुआ था, हर भारत का आप्त।।
जाग उठी थी अयोध्या जब, गूँजा आपका हुंकार,
तप-शक्ति आपकी दहकी जैसे, रण में वीर पुकार।
आपके त्याग की गाथा गाती, हर जन-जन की बानी,
आपके बिना अधूरी होती, रामकथा की कहानी।।
मेरे जीवन में आप बने हैं, प्रेरणा का प्रकाश,
आपके दर्शन से ही जगी है, सेवा की वह आस।
अगर मैं राष्ट्र-पथर बना हूँ, आपकी छाया से बना,
आपके संघर्ष का ही अंश हूँ, आप ही का वंश बना।।
आज जयंती पर शत-शत, विनम्र नमन करूँ,
आपके आदर्शों को जीवन में, अटल नियम धरूँ।
स्मृति-शेष पर भी अमर रहे, आपका जयघोष महान,
अशोक जी सिंघल अमर रहेंगे, भारत के सम्मान।।
रचयिता – जतिन त्यागी