दूर दूर तक यहां
छाया हुआ अंधकार है।
लोभ, इर्ष्या, अंहकार
छाया हर ओर है।
मैं बड़ा, मैं ही बड़ा
का घमंड हर ओर है।
दम तोड़ती मासूमियत,
इंसानियत हर ओर है।
ताकत के मद में चूर देखों
आज हर एक इंसान है।
धरती पर आंतक कैसा
देखों यह चारों ओर है।
कली ने कलियुग में मचाया
देखों कैसा शोर है।
इंसान ही इंसान के खून का
प्यासा फिरे हर ओर है।
दूर दूर तक यहां
छाया हुआ अंधकार है।
लोभ, इर्ष्या, अंहकार
छाया हर ओर है।
- vrinda