कविता का नाम: "Vyom ka Vatsalya"
(भाई के प्रेम की एक अनकही कहानी)
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बड़ा था Vyom, समझदार भी था,
Nav था छोटा, थोड़ा बेपरवाह भी था।
भाई था वो पर बना जैसे एक ढाल,
Nav की हर गलती पर रखे नज़र बेहाल।
"मत जागो रात भर, नींद है ज़रूरी,"
"पढ़ाई मत छोड़ो, ये नहीं कोई मजबूरी।"
"दोस्त ठीक हैं पर हर दिन मत फिरो,"
"स्कूल से घर समय पे ही आओ ज़रूर।"
पर Nav को लगता, भाई बस टोकता है,
हर बात पे उस पर रोक-टोक करता है।
"तू क्या जानें मस्ती की रफ्तार?"
सोचता था वो – Vyom है बस विचारों का हथियार।
फिर आया वो दिन जब कक्षा 12 की थी परीक्षा,
Nav ने की चालाकी, रच दी थी एक विपत्ति की रचना।
रात को पेपर खरीद, Vyom ने खूब रोका,
पर Nav ने कहा – “भाई, तुझसे न होगा!”
परिणाम आया, नंबर थे शून्य के पास,
गिर गया सपना, बुझ गया हर उल्लास।
दुनिया ने डांटा, मोबाइल भी छीन गया,
Nav की आंखों से आत्मविश्वास भी भीग गया।
तभी आया Vyom, बना उसका सहारा,
पिता से कहा – "प्लीज़, न करो उसे किनारा।"
"इस बार हालात कठिन थे, नसीब था कमज़ोर,"
"सज़ा नहीं, उसे चाहिए प्यार और और जोर।"
पिता ने सुनी बात, और मोबाइल लौटाया,
Nav ने पहली बार, Vyom का हृदय पहचाना।
समझ गया वो – जो हर बार टोका करता था,
वो नहीं दुश्मन, बल्कि रक्षक सा बर्ताव करता था।
भाई का वो प्यार, जो कठोरता में था छुपा,
अब दिखा उसे – सच्चा, गहरा और बिना दुपट्टा।
Nav ने आँखों में आँसू लिए कहा चुपचाप,
“भैया, तू ही है मेरा असली किताब।”
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कविता का सारांश:
इस कविता में Vyom और उसके छोटे भाई Nav के रिश्ते को दर्शाया गया है। Vyom अपने भाई को बहुत प्रेम करता है लेकिन अपने अनुभवों के कारण वह उसे सख्ती से समझाता रहता है। Nav को Vyom की हर बात टोका-टोकी लगती है। एक बार जब Nav ने 12वीं की परीक्षा में गलती की और फेल हो गया, तब सबने उसे डांटा। वहीं Vyom ने उसकी रक्षा की और पिता से उसे माफ करवा दिया। तभी Nav को अपने भाई का असली प्यार समझ आया। यह कविता दर्शाती है कि सख्ती में भी कितना गहरा प्रेम छिपा होता है।