कुछ यूँ बदल रहा है सब कुछ अब हालातों की तरह,
चेहरे मुस्कुरा रहे हैं मगर जज़्बातों की तरह....
रिश्ते भी अब सवालों में उलझने लगे हैं,
जवाब नहीं मिलते, बस खामोश रातों की तरह...
कल तक जो अपने थे, अब अजनबी से लगे,
वो भी मिले हैं हमसे अब रस्मों-रिवाजों की तरह....
हमने भी खुद को कुछ इस कदर सहेजा है,
टूट कर भी दिखते हैं सही, किताबों की बातों की तरह...
कुछ यूँ बदल रहा है वक़्त अपने ही रंग में,
हर लम्हा बीत रहा है, अधूरी मुलाक़ातों की तरह...
- Manshi K