हम पिलाते तुम्हें चाय तहज़ीब से।
तुमको पीने न आया तो हम क्या करें?
हम सुधरने के मौके तो देते रहे।
आग से तुमने खेला तो हम क्या करें?
याद रखना अभी ब्रह्मदण्ड मौन है।
सब खुराफात इसमें समा जायेगा।
हम तो पंचनद के पानी पिलाये तुम्हें।
तुमको पानी पचा ना तो हम क्या करें?
भय तिरस्कार संहार के तुम जनक।
जान पर आ गयी बात हम क्या करें?
धैर्य को भय समझते रहे तुम सदा।
भय में भर करके भूसा जला हम दिये।।
शील-लज्जा को कमजोरियां मानकर,
हो गया खुद तू नंगा तो हम क्या करें?
हम बहुत सह चुके धौंस-धोखे, सुनो!
धूल में कल लसारेंगे तुमको सुनो।।
बेवजह रार की राह तुमने रची।
रार की राह हम दाह देंगे सभी ।।
रण की चण्डी है प्यासी बड़ी जोर से।
रक्त पीकर तुम्हारा रुकेगी दनुज !
चल पड़ी काली लेकर के खप्पर खडग।
रक्तबीजाशिनी अब रुकेगी नहीं।।
अब महाकाल काली के पग बढ़ चले।
जीत भारत की है भारती कह रही।।
हे महादेव हैं आप सिन्दूर जनक।
सिन्ध सिन्दूर शिर पर सजा कह रहा।।