हाल ही में एक अखबार में प्रकाशित घटना ने झकझोर दिया। खबर दरअसल यह थी एक बारह साल के लड़के ने अपनी ही छह साल की बहन का गला रेंतकर मार दिया । सोंचो तो जरा, बच्चा जो महज़ बारह साल का है उसके अंदर इतनी हिंसात्मक भावना कहाँ से आ गई । हम तो आज के जमाने में कहते है, बच्चों का दिमाग़ कंप्यूटर से भी ज़्यादा तेज चलता है , आज के जमाने में बच्चे बैठना देर में शुरू करते हैं मगर मोबाइल चलाना पहले सीख लेते हैं । तो इस लिहाज से मानों तो बच्चों के अंदर पहले जमाने के बच्चों से ज़्यादा मैच्युरिटी होनी चाहिए ना । मगर नहीं अपने से छह साल छोटी बहन को मारने में उसे जरा भी गुरेज नहीं हुआ । पहले बहन से लड़ाई होती है , फिर वो बाहर खेलने जाता है । वापस लौटता है तो एक कटर लेकर आता है , फिर बहन से झगड़ा होता है और वो उसे कटर से गला रेंतकर मार देता है । पड़ोसियों और पिता को झूठी कहानी बताता है | उसके मन में डर नहीं , कोई पछतावा नहीं बल्कि कहानी बुनी । बहुत सोंचने समझने के बाद यही समझ आया शायद आजकल की व्यस्त दुनियाँ में किसी के पास फुर्सत ही नहीं कि वो देख पायें कि उनके बच्चे किस संगति में पड़े हैं , किसके साथ खेल रहे , क्या खेल रहे , क्या बात कर रहे ? हमारे पास इतना वक़्त ही नहीं कि मोबाइल की दुनियाँ से बाहर निकलकर अपने बच्चों को सही ग़लत का भेद बता पायें , क्रोध और क्षमा का अर्थ समझा पायें, असल मायने में इंसानियत का पाठ पढ़ा पायें । ना तो हम ख़ुद उस रील की दुनियाँ से बाहर आ पा रहे ना अपने बच्चों को वास्तविक दुनियाँ से रूबरू करा पा रहे । यह अपराधिक गतिविधियाँ हमारी पैरेंटिंग में बहुत बड़ा सवाल खड़ा करती हैं , कहीं ना कहीं हम एक माँ बाप के रूप में असफल होते जा रहे हैं जो अत्यधिक विचारणीय है ।