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vrinda

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जिंदगीं का सफर में,
हर एक पल बहार है।
तू साथ है जो मेरे,
तो हर पल एक नया त्यौहार है।


तेरे आने के बाद अब तो
इस जीवन में यारा,
हर एक पल गुलशन
और हर एक दिन शानदार है।

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प्यार का मौसम
हर रोज हर एक वार है

अगर मेरे साथ में
तू बनकर मेरा प्यार है।


- vrinda

दूर‌ दूर तक यहां
छाया हुआ अंधकार है।
लोभ, इर्ष्या, अंहकार
छाया हर ओर है।

मैं बड़ा, मैं ही बड़ा
का घमंड हर ओर है।
दम तोड़ती मासूमियत,
इंसानियत हर ओर है।

ताकत के मद में चूर देखों
आज हर एक इंसान है।
धरती पर आंतक कैसा
देखों यह चारों ओर है।

कली ने कलियुग में मचाया
देखों कैसा शोर है।
इंसान ही इंसान के खून का
प्यासा फिरे हर ओर है।

दूर‌ दूर तक यहां
छाया हुआ अंधकार है।
लोभ, इर्ष्या, अंहकार
छाया हर ओर है।


- vrinda

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एक रस्ता है,
जिस पर कोई ना जाता है‌।
क्योंकि क्या कहेंगें चार लोग,
इस बात का डर सबको सताता है।
पर करके हिम्मत कोई,
जो दो चार कदम बड़ा भी पाता है।
तो ना जाने फिर वो क्यों,
लाख मुश्किलें पाता है।
पर डट जाएं जो कोई वहां,
वो सच्ची खुशियां पाता है‌।
झेलते हुए रास्ते में ही,
वो खुशियों को बचाता जाता है‌।
अपनी आने वाली पीढ़ी को,
वो बस फिर एक बात समझाता है।
कि एक रस्ता है,
जहां कोई नहीं जाता है।
पर पार कर ले उसे सारी खुशियां वो पाता है
- vrinda

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उसका मासूम चेहरा,
सौ- सौ फरियाद लगाता रहा।
भूखा - प्यासा था वो शायद,
इसलिए अपने‌ आंसूओं से भूख मिटाता रहा।

तकलीफ थी उसको बहुत,
सो चेहरे से दिखाता रहा।
किसको कहता वो बेचारा,
सो खुद ही आंसू बहाता रहा।

सोने को फुटपाथ और
खाने को धिक्कार पाता रहा।
तन ढ़कने को कुछ मिला ही नहीं
बस एक फटी सी कतरन में ही खुद को छुपाता रहा।

- vrinda

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तेरी ये  बिंदियां रे पगली
बस कमाल करती है।
इसे देख लूं जो एक बार
तो मेरे दिल में धमाल करती है।
जो ना देख पाऊं
तो दिल का बुरा हाल करती है।
तेरी ये बिंदियां भी कमाल करती है।

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ऐ जिंदगीं सुन,


ऐ जिंदगीं सुन,
कभी मेरे घर भी  आ जाना
मैं तेरे इंतजार में हूं,
कम से कम अपनी शक्ल तो दिखा जाना।


कबसे बैठी हूं यहां हताश यहां,
तुम थोड़ा सा हौसला मुझको भी दे जाना।
कभी फुरसत जो मिले तुमको,
तो मेरे घर भी आ जाना।

घनघोर अंधेरा देखो‌ है कितना,
तुम रोशनी की एक किरण दिखला जाना।
कभी फुरसत जो मिले तुमको,
तो मेरे घर भी आ जाना।

- vrinda

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रात के अंधेरें में जुगनू चमकते ऐसे है,
मेरी आंखों में टिमटिमाते सपने जैसे है।



- vrinda

ओ बंशी वाले जादूगर
कभी मेरे घर तुम आ जाओ....

मैनें माखन दही बनाओ है
संग ग्वालों को भी बुलाया है
मैनें माखन दही बनाओ है
संग ग्वालों को भी बुलाया है
तुम आकर माखन खा जाओ,
अपनी बंशी मुझे सुना जाओ।

ओ बंशी वाले जादूगर
कभी मेरे घर तुम आ जाओ....

मैनें गईयन को मंगवाया है
संग बछड़ों को भी सजाया है
मैनें गईयन को मंगवाया है
संग बछड़ों को भी सजाया है
तुम आकर गईया चरा जाओ
धुन अपनी उनको भी सुना जाओ......

ओ बंशी वाले जादूगर
कभी मेरे घर तुम आ जाओ....

मैनें गोपियन को बुलवाया है
संग रास को आंगन सजाया है
मैनें गोपियन को बुलवाया है
संग रास को आंगन सजाया है
मन आनंद से मेरो भर जाओ
तुम आकर रास रचा जाओ......

ओ बंशी वाले जादूगर
कभी मेरे घर तुम आ जाओ....
तुम आकर माखन खा जाओ,
अपनी बंशी मुझे सुना जाओ.....
तुम आकर गईया चरा जाओ
धुन अपनी उनको भी सुना जाओ.....
मन आनंद से मेरो भर जाओ
तुम आकर रास रचा जाओ.....

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बस अपने प्यार के खातिर,
वो‌ जमाने से लड़ता रहा।
घुटता था वो अंदर से,
पर बाहर से वो हंसता रहा।

घुटता था वो अंदर से
पर बाहर से वो हंसता रहा।
बस प्यार के खातिर
वो‌ जमाने से लड़ता रहा।


सौ सौ आंसू बहा के रातों में,
दिन में सूरज सा वो चमकता रहा।
बस अपने  प्यार के खातिर
वो‌ जमाने से लड़ता रहा।


अपनों से ही हठ कर वो
अपने के लिए हीं तड़पता रहा।
अपनों से ही हठ कर वो
अपने के लिए हीं तड़पता रहा।



बस प्यार के खातिर
वो‌ जमाने से लड़ता रहा।



तकलीफ तो कम उसकी भी ना थी,
तकलीफ तो कम उसकी भी ना थी,
पर फिर भी वो  सहता रहा।
बस प्यार के खातिर
वो‌ जमाने से लड़ता रहा।



मुस्कुराती रहा करो तुम सदा,
ये बार बार वो  उस से कहता रहा ।
मुस्कुराती रहा करो तुम सदा
ये बार बार वो  उस से कहता रहा ।


बस प्यार के खातिर
वो‌ जमाने से लड़ता रहा।
वो‌ जमाने से लड़ता रहा।

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