सूटकेस
हाल ही में एक खबर सोशल /प्रिंट मीडिया में जमकर वायरल हो रही है कि एक नामी गिरामी यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में एक लड़का अपनी गर्लफ्रेंड को सूटकेस के अंदर छिपाकर ले जा रहा था मगर सुरक्षा कर्मियों की सतर्कता के चलते वो ऐसा कर नहीं पाया और यह घटना जग जाहिर हो गई ।
पता नहीं आप सबके मन में क्या चला होगा यह खबर पढ़कर या वीडियो देखकर ? मैं अगर कहूँ तो तमाम सवाल आने लगे मेरे ज़ेहन में । सबसे पहला तो यही कि कैसे संस्कार दिए गए हैं , लड़का हो या लड़की के घरवालों ने ? क्या लड़की के घरवालों को इस बारे में पता होगा कि उनकी बेटी ऐसे सूटकेस में बंद होकर बॉयज़ हॉस्टल जा सकती है ? अगर इतना ही सही था तो इतना छुपना छुपाना जरूरी था ? ऐसे ही अजीबोगरीब सवाल जिनके कोई जवाब नहीं थे मेरे पास । मैं सोंचने पर मजबूर हो गई कि ऐसी ही लड़कियां हिम्मत देती हैं ,, आज ज़िंदा होकर ख़ुद बंद हो जाती हैं ,,, कल मरने के बाद दूसरा कोई उनके टुकड़े टुकड़े करके फेंक देता है । जब इतना सब अनुचित हो जाता है तब सिवाय अफ़सोस और सहानुभूति के अलावा कुछ नहीं बचता है । आज अब भी आप सबको क्या लगता है इस बारे में ? क्या यहाँ संस्कारों की बात करना उचित होगा ? शायद हाँ,, क्यूँकि सबसे ज़्यादा जरूरी पारदर्शिता है , दोनों ही तरफ़ से , माँ बाप की तरफ़ से भी और बच्चों की तरफ़ से भी । सबसे पहले माँ बाप को सही ग़लत का भेद बताना बेहद ज़रूरी है ,, एक दोस्त जैसे बच्चों को समझने और समझाने की जरूरत है । वही बच्चों को भी कुछ भी सब कुछ साझा करना चाहिए , अपने हरेक दिन की दिनचर्या , अपने मन की हरेक बात अपने माँ बाप से बताना चाहिए । दोनों ना सही कम से कम एक को तो अवगत कराना चाहिए , परामर्श लेना चाहिए । अगर उनपर विश्वास करके उनको घर के बाहर भेजा जाता है ताकि वह अपने सपनों को पंख दे सके , तो कोशिश करें कि उनकी उड़ान में कोई वो कम से कम स्वयं बाधा ना बने । कुछ बनें ना बनें कम से कम इंसानियत को शर्मिंदा ना होने दे ।