ये नींद के किस्से भी अजीब होते हैं,
छुप जाते हैं कभी कभी
एक जिद्दी बच्चे की तरह,
जिद पूरी न हो तो आते ही नहीं,
काश मेरी भी जिद पूरी होती
जो बात अधूरी उनसे ना रहती
बस वो अपनी बात कह गए,
मुझे हजार दोष,सलाह साथ दे गए,
मैनें जो चाहा कुछ कहना ,
वो नींद में चाहे जाना,
खुद रोए,खुद ही मान गए
अपनी ही अतरंगी स्थितियों से
हंसते रह गए हम खुद पे,
कुछ वक्त और रुक जाते ,
अच्छी नींद मुझे भी आ जाती,
उनके वजह से कम से कम...
आधी रात को शब्दों से ना खेलती
थोड़ा सा वो मुझे भी सुन लेते काश
बेपरवाह की नींद हमें भी मिल जाते आज...