हृदय रूपी “गंगोत्री" से निकली
‘भावनात्मक धाराएं’तथा
नेत्र रुपी “यमुनोत्री" से निकली
‘अश्रु—धाराएं’ जब
कपोलों के “पठार" से होकर
धरा पर गिरतीं हैं, तब
अदृश्य‘सरस्वती की धाराओं’से
उनका “संगम" होता है।
इस प्रक्रिया का कारण "दुःख"
एवं परिणाम “प्रतिकूलता" है।
..त्रिपाठी..