उस इनसान की क्या बात करें,
जिसका न कोई उद्देश्य रहा ।
ऐसे जीवन को क्या कहे,
जिसमें केवल श्वास ही बस शेष रहा ।
मानव जीवन गर पाया है,
क्यों न उसका उपयोग करें ।
क्यों न विपदा झेले कुछ पल,
फिर मंजिल का उपभोग करें ।
क्यों बैठे रहें लाचार, निर्बल ;
फिर पछतायें और शोक करें ।
क्यों न बुद्धि, साहस के बल पर,
अर्जित सारा भू-लोक करें।