ए मौत एक महोलत तो दे ,
खो गया जो बचपन,एक बार फिर जी आऊँ
बीछड गये मेरे उनसे एक बार फिर मील पाऊँ
आश छुट गई थी मिलने की
एक दीदार ऊन का कर पाऊँ
मेरे रुठ गए थे मुज से
बस एक बार गले लगा पाऊँ
ए मौत एक महोलत तो दे
राह छुट गई थी उस पे
ऊन के साथ दो कदम चल पाऊँ
जो कभी न कह पाया
वो ऊन से अब कह पाऊँ !!!
माना की तु ज़ालिम है, कहा सुनती है कीसी की?
मगर ए मौत एक महोलत तो दे
जो बीखर गया वो सीमट पाऊँ!!!