वही चार लोग...
अगर कोई जानता हो तो मुझे भी मिलवा देना,
बात करनी है कुछ हो सके तो करवा देना,
आज कल काफ़ी दख़ल दे रहें हैं वो मेरे जीवन में ,
मिलना ना हो सके तो ख़ुद ही बता देना,
के अब उनकी वजह से बाहर जाना बंध है,
मेरी अलमारी में कपड़े अब उनकी पसंद के आते है।
दोस्तों के चारित्य को जबसे उन्होंने तेय किया है,
हमारे शौक पर भी रोक लगने लगी है ।
हसना बोलना अब उनके मुताबिक़ करना पड़ता है,
जबसे इन्होंने संस्कारो के नाम की जेल बनाई है ।
सभ्य समाज के नाम पर लगाम हमारे भी गले में बांधी गई है,
अरे! अब तो सपने भी इनके हिसाब से देखने पड़ रहें हैं।
और अब इनकी वजह से होने लगे हैं मानसिक रोग,
देखा तो नहीं कभी उन्हें लेकीन सुना है; हैं कोई चार लोग ।
कोई जानता हो तो मिलवा देना , नहीं तो बस ये बात पहुंचा देना
श्रद्धा