# साहस # लक्ष्य
मुशिकलें रोज़ नई आएंगी,
कब तक उनसे घबराओगे,
इस संसार नाम के सागर में,
यूँही भ्रमित हो कर रह जाओगे ।
कर लो उठकर वह ख्वाब सजीव,
जो अंतरमन में है दबा हुआ,
जिस क्षण की आस में हे मानव,
है रोम - रोम तेरा जगा हुआ ।
साहस की लघुता से ही अकसर,
लक्ष्य, स्वपन बन रह जाता है,
इसको पूरा कर जाने का,
प्रभु आवश्य कोई मार्ग दिखाता है ।
हालात से क्यों समझौता कर,
ख्वाबों को अपने तोड़ूं मैं,
जो ठान लिया उस कारज को क्यों
कल क्या होगा उस पर छोड़ूं मैं ।