निर्णय
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स्त्रियों मन भर पढ़ो
पर मत करो छँटाक भर सवाल
रख दो अपने तमाम सवाल ताक पर
खुद को समेट लो एक निश्चित परिधि तक
कि सवाल व्यवस्था पर पहुंचाते हैं चोट
और चोट करने वाली स्त्रियाँ खतरा हैं इस व्यवस्था के लिये
तुम सबके लिये सपने बुनो
पर मत बुनो खुद के लिये कोई सपना
कि तुम्हारे सपनों की गूँज से
धसक सकती है बरसो पुरानी नींव
जब याद आये कोई सपना
तो तुम गुनगुना लेना गोधूलि में पीर अपनी
भोर में तुलसी को जल देते हुए कर लेना साझा अपना मन
सबके सामने न रो पाओ
तो रसोई में प्याज की परतों के परे बहा लेना अपने सिंचित आँसू
और कोई देख ले तो कोस देना मरी प्याज को
कोस लेना खुद को कि ये पिछले जनम के बुरे कर्मों का फल है
स्त्रियों मत रहो महान बनने की असफल कोशिश में
छोड़ दो लकीरों पर चलना
बना लो ना नई लकीरें आप
जी लो ना आत्मसम्मान से
इहलोक और उहलोक की परिधि से आगे भी एक सपनीली दुनिया है
जहाँ सपने हैं
नीली झील में तैरती मछलियाँ हैं
पेडों से झरते हुए स्निग्ध फूल हैं
पश्चिम से आते हुए पंछी हैं
पूरब से झाँकता सूरज है
आसमान में टँगे चाँद तारे हैं
ये सब तुम्हारे लिये ही हैं
वापस के दो उनकी दी हुई छत
और छीन लो सारा आसमान अपने लिये
देह तुम्हारी मन तुम्हारा
तो खुद के निर्णय भी तुम्हारे
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शालिनी सिंह