**सच्ची-बेटी* -*
तुम्हारी आंखें, अच्छी है ,
वो ये,कहकर मुझे रिझाती थी!
ये बाते झूठी थी, या सच्ची थी
पर सातवे आसमानों में
मेरे अरमानों कि बस्ती थी।।
एक दिन गाने लगी वो,इक गीत,
सुन-सुन मेरे यार, सुन-सुन मेरे मीत,
चाहती हूं मै, तुम्ही में खिलना,
तुम्ही में, फिर मुरझा जाना!
तेरे आगोस के दरिया में
बूंदों कि तरह मिल जाना!!
पर मै रौनक हूं ,किसी कुटुम्ब कि,
इकलौती मैना ,उसके वागवां कि !
बल हूं मै,किसी के ,भुजा कि,
पगड़ी का मान हूं मै,पिता कि!
लाज हूं मै, मां के,संस्कारों कि
स्वाभिमान हूं मैं ,इस धरा कि!!
उजाड़ कर अपने बबूल की कुटिया,
कैसे सजा लू ,अपनी सपनों खुशियां!
पूछना जरा खुद जमीर से अपने,
कैसे निकालोगे, तुम दिल से उन्हें,
जिन्हें मानते हो भगवान अपना !
जिस प्रणय के वरण में अपनों ,
के अशीषों की वर्षा ना होंगी,
उस गुल गुलशन में खुशियों,
के फूल बोली कैसे खिलेगे,
हां ,मुझे बेवफा मत कहना,
मेरी रूह में सामिल रहोगे,
तुम धड़कती सांसों कि तरह!
हां ,मेरी रूह में रहना पर ,
मेरे जिस्म को मत छूना,
कोई मुझे बेवफा ना कहे
तुम मेरी लाज रखना !
जैसे भी जहा भी रहना ,
यूं ही सदैव खुश रहना!
आवक रह गया मैं सुन राधा के ,
मुख से उद्धव की बोलियां !
यू ही नहीं कहलाती बेटी,देवियां
इन्हीं से सीखा होगा शिव-शंकर
विष को अमृत कि तरह,पीने की रितिया
मोहब्बत सच्ची थी,या झूठी थी।
पर हां वो अपने वालिद कि, बेटी सच्ची थी।।
Nagendra singh sombansi..✍️