ज़िन्दगी
कभी इन लहराती हुई हवाओ को
बहकते हुए देखा है।
कभी इन बादलो को
टूटकर बरसते हुए देखा है।
कभी इन लहरो को किनारे पे
चट्टानों से टकराते हुए देखा है।
कभी इन किरणों को
कवन को छूते हुए देखा है।
कभी इन मौसमों को
फुरसत से सुहाना बनते देखा है।
कभी इन तन्हाई को
अकेले में बात करते देखा है।
कभी इन सुखे पत्तो को
टहनीयों से अलग होते देखा है।
कभी इन फूलो को
गुनगुनाते हुए देखा है।
कभी इन पानी के बहाव का
संगीत ध्यान से सुना है।
कभी इन साहिल की
गहराई में डूबकर देखा है।
कभी इन महकती खुश्बू को
मस्ती से फैलते देखा है।
कभी इन तितलियों को
बेफिक्र से उड़ते हुए देखा है।
क्या नाम दोगे इन लम्हो को।।।
ज़िंदगी।।।।।।।।
- Prachi patel