*सुकून की सांस* (लघुकथा)
रामकिसन की उम्र 60 वर्ष से ज्यादा होने को आई थी वह इतनी उम्र में भी हाथगाड़ी से समान बेच कर आपने परिवार का पेट अकेलेही वह भरा करता था।उनके इस काम मे उनकी कमाई तो ज्यादा नही थी पर भूखे मरने की नौबत भी कभी नही आई। उसे आपनी किस्मत से ज्यादा आपनी मेहनत पर विश्वास था,इस साल लगता था कि यहा बजार नया होने के कारण नये समान की माग रहेगी और वे यहा समान बेच कर इतने पैसे तो जुटा ही सकता है कि इकलौती बेटी की शादी अच्छी तरहा से कर सके , जब आरती पांच साल की थी तब से ही उनकी पत्नी उमा बेटी की शादी के लिए छोटे-छोटे समान जुटा रही थी ।
आखिर वहा वक्त भी आ गया जब उनकी विवाह रतनलाल से होना था।
मगर किसमत के आगे किसकी चलती है इस साल रामकिसन के उनका काम से कुछ अधिक मुनाफा नही हो सका।और घर पक रखे कुछ कीमति समान पर चौरों वे हाथ सफ़ाई कर दी।घर की हालत देख रामकिसन सिर पकक्कड़ कर बैठ गया।उसे डर था कि आगर लड़के वालों को यहा बात पता चल गई तो वे कही रिश्त ही न तोड दे,लेकिन बात कब तक छुपी रहती ,उसके पड़ोसी से रतनलाल के घर वालो को यहा बात पता चल ही गई।दुसरे दिन रामकिसन को बिना बताए रतनलाल का पुरा परिवार सगई का समान लिए उनके घर पर आ गई।उन्हे अचनाक देख रामकिसन डर गया,उनके भाव देख रतनलाल ने कहा,आपकी चिंता हम सब जनते है ।इसमे आपका कोई कुसूर नही है, मैं अब भी आपकी बेटी से शादी करने को तैयार हुँ।ज्यादा खर्च न आए इसलीए हम ने सबने मंदिर मेंचूनिदा लोगो के बीच शादी का निर्णय लिया है, यहा सुनकर रामकिसन ने सुकून की सांस ली।
( सुनिलम वरकड़े M.P)