The Download Link has been successfully sent to your Mobile Number. Please Download the App.
Continue log in with
By clicking Log In, you agree to Matrubharti "Terms of Use" and "Privacy Policy"
Verification
World's trending and most popular quotes by the most inspiring quote writers is here on BitesApp, you can become part of this millions of author community by writing your quotes here and reaching to the millions of the users across the world.
दाऊद इब्राहिम – डोंगरी का दहशतगर्द
डोंगरी की गलियों में जन्मा एक नाम था खौफ का,
गरीबी में पला, पर सपना था बादशाहत का।
पिता पुलिस में था, पर बेटा बन गया काल,
छोटे-मोटे जुर्म से शुरू हुआ, फिर बढ़ा सवाल।
1980-90 में डी-कंपनी बनी उसकी तलवार,
मुंबई से लेकर दुबई तक फैला उसका व्यापार।
फिल्म, हवाला, स्मगलिंग – सब पे था उसका राज,
दाऊद का नाम सुनते ही कांपते थे 'थानेदार'।
93 के धमाकों से कांपी थी मायानगरी,
पर आज भी डोंगरी में गूंजती है उसकी 'डर की नगरी'।
---
अगर चाहो तो इसी तरह बाकी अंडरवर्ल्ड डॉन पर भी बना दूं – जैसे अरुण गवली, वरदराजन, हाजी मस्तान, शब्बीर इब्राहिम आदि।
#PassG story
✤┈SuNo ┤_★_🦋
नज़र रखते हुए भी, मैंने उसको
रोका नहीं,
उसे पिंजरे से मेरे मैंने भी आज़ाद
कर दिया,
थी रूह उसकी परेशान, मेरे पास
रुककर भी,
सो ख़ुद ही मैंने इक ख़ामोश
अलविदा कह दिया,
"मोहब्बत थी, या आदत" ये
समझना मुश्किल था,
बस एक फ़ैसला जो मैंने यूँ नाशाद
कर दिया,
वो उड़ गया जहाँ को, जहाँ उसकी
मंज़िल थी,
मेरे लिए तो बस इक वीरान सा घर
आबाद कर दिया,
अब अक्सर सोचता हूँ, क्या ये
फ़ैसला सही था.?
कि अपने दिल को मैंने क्यों इतना
बरबाद कर दिया,
न कोई शिकवा अब है, न कोई
शिकायत लबों पर,
बस एक दर्द है जो सीने में मेरे
मुस्तक़िल याद कर दिया,
हां नज़र रखते हुए भी, मैंने उसको
रोका नहीं,
उसे पिंजरे से मेरे मैंने भी, आज़ाद
कर दिया...🔥
╭─❀🥺⊰╯
✤┈┈┈┈┈★┈┈┈┈━❥
♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
#LoVeAaShiQ_SinGh 😊°
✤┈┈┈┈┈★┈┈┈┈━❥
🧠 सोच और प्रतिक्रिया – आपकी असली पहचान
हमारी ज़िंदगी में दो चीज़ें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं — हमारी सोच और हमारी प्रतिक्रिया। यही दो पहलू मिलकर हमारी पहचान बनाते हैं।
“मनोविकार हमारी मनोस्थिति तय करते हैं — वे इस बात का आईना हैं कि हमारी सोच कितनी ग्रसित है और हम स्वयं की नज़रों में क्या स्थान रखते हैं।”
– धीरेंद्र सिंह बिष्ट
लेखक: “मन की हार, ज़िंदगी की जीत”
हर व्यक्ति के भीतर कुछ ना कुछ चल रहा होता है — कभी तनाव, कभी भ्रम, कभी अधूरी इच्छाएं। ये सब मिलकर मन के भीतर एक हलचल पैदा करते हैं, जिसे हम अक्सर बाहर प्रकट कर देते हैं। लेकिन हम भूल जाते हैं कि हमारी प्रतिक्रिया ही हमारा असली चेहरा बन जाती है।
“जब कोई व्यक्ति बिना सोचे प्रतिक्रिया देता है, तो वह न केवल अपनी बात की गहराई खो देता है, बल्कि अपनी पहचान की चमक भी धूमिल कर देता है।”
– धीरेंद्र सिंह बिष्ट
कभी-कभी ग़ुस्से में कही गई बात, या तुरंत दी गई प्रतिक्रिया, हमारे वर्षों की मेहनत और छवि को क्षणों में मिटा सकती है। सोच-समझकर बोलना केवल परिपक्वता की निशानी नहीं, बल्कि आत्म-अनुशासन और आत्मसम्मान का प्रतीक है।
📚 “मन की हार, ज़िंदगी की जीत” सिर्फ किताब नहीं है, यह एक यात्रा है — अपने भीतर झांकने की, अपने सोच के स्तर को परखने की और भावनाओं को बेहतर ढंग से समझने की।
इस पुस्तक का हर पृष्ठ एक नया सवाल खड़ा करता है –
❓ हम खुद को कितनी गहराई से समझते हैं?
❓ क्या हम अपनी प्रतिक्रियाओं के ज़रिए खुद को उजागर कर रहे हैं या खो रहे हैं?
🎯 अगर आप आत्मविकास, मानसिक शांति और स्पष्ट सोच की तलाश में हैं, तो यह किताब आपके जीवन की दिशा बदल सकती है।
#मनकीहार_जिंदगीकीजीत #धीरेंद्रसिंहबिष्ट #HindiLiterature #BookLovers #InnerPeace #SelfAwareness #EmotionalMaturity #सोचसमझकरबोलो #LifeWisdom #BestsellerBook
★.. चैप्टर–04–जितना कठोर उतना श्रेष्ठ
मुसलमान अक्सर पूछते हैं: यदि मुहम्मद इतना बड़ा झूठा था तो उसने इस तरह का धर्म क्यों बनाया, जो इतने सारे बंधनों वाला और कठोर है ? वास्तव में इस्लाम उन कठोर धर्मों में से एक है, जिस पर अमल करना बेहद मुश्किल है। यह धर्म तमाम वर्जनाओं, कर्मकांडों और कर्तव्यों के साथ संताप देने वाला है। क्या भय दिखाकर और धमकी देकर बांधे रखने वाले धर्म को मानने में कठिनाई नहीं होती ?
आस्था का एक स्वयंसिद्ध आधारभूत सिद्धांत वह भी होता है, जिसमें विरोधाभास होता है। इसे कुछ इस तरह कहा जा सकता है: किसी सिद्धांत के अनुपालन में जितनी अधिक कठिनाई होगी, उतना ही उसमें स्वाभाविक आकर्षण होगा। यह हमारे मन की प्रवृत्ति है कि हम उन चीजों की प्रशंसा करते हैं, जिसे पाने के लिए अधिक यत्र करना पड़ता है। दूसरे शब्दों में कहें कि जो चीज हमें आसानी से या मुफ्त में मिल जाती है, उसका मोल हम कम आंकते हैं| संप्रदाय कष्ट की बड़ाई करते हैं और सरल जीवन का तिरस्कार करते हैं । यह असल में वह कष्ट ही है, जो इन्हें आकर्षक बनाता है।
सभी संप्रदायों की प्रकृति ऐसी होती है कि उनका अनुसरण करना कठिन होता है। द फंडामेंटलिस्ट चर्च ऑफ जीसस क्राइस्ट ऑफ लेटर डे सेंट्स, एफएलडीएस के रूप पहचाने जाने वाले मोर्मन पॉलीगैमिस्ट संप्रदाय के वारेन जेफ्स के अनुयायी उसके लिए मुफ्त में काम करते थे और अपनी सारी कमाई उसे सौंप देते थे। वह हर महीने दो मिलियन डालर से अधिक धन इकट्ठा कर लेता था, जबकि उसके अनुयायी जिंदा रहने के लिए दान पर निर्भर रहते थे। जेफ्स का अपने अनुयायियों पर अनन्य नियंत्रण था। उसने अनुयायियों के लिए टीवी देखने, रेडियो सुनने, अपने गानों के अलावा कोई और गाना सुनने आदि पर प्रतिबंध लगा रखा था।
उसने अनुयायियों को रहने के लिए घर दे रखे थे और कह रखा कि वे किसी गैरसंप्रदाय के व्यक्ति के साथ मेलजोल न बढ़ाएं। वह अनुयायियों के लिए पति या पत्नी चुनता था। यदि वह प्रसन्न नहीं होता था तो आदेश देता था कि अनुयायी अपनी पत्नी को छोड़ दे। उसके अनुयायी उसकी आज्ञा का पालन करते थे। संप्रदाय पूरा समर्पण और साथ ही बड़े त्याग की मांग करता है।
अन्य संप्रदायों जैसे जिम जोन्स, शॉको असहारा, द मूनीज या हैवेन्स गेट को देखें । इन संप्रदायों का अनुसरण करना सरल नहीं था। इन संप्रदायों के सदस्यों को अक्सर कहा जाता था कि वे अपने सारी धन-संपदा नेता को सौंप दें, अपने कामधाम, दोस्त-यार, रिश्तेदारों को छोड़ दें, ताकि संप्रदाय के नेता का अनुसरण कर सकें। इन संप्रदायों के अनुयायी कठोर जीवन जीने के लिए बाध्य किए जाते थे और कभी-कभी तो संभोग करने से परहेज करने को कहा जाता था। इस बीच, संप्रदाय का नेता वह सबकुछ करता था, जिसकी उसे इच्छा होती थी | डेविड कोरेश अपने अनुयायियों से कहता था कि महिलाएं ईश्वर से संबंधित होती हैं। चूंकि वह मसीहा है, इसलिए महिलाएं उससे संबंधित हैं | वह अनुयायियों को ब्रह्मचर्य का पालन करने का आदेश देता था, लेकिन उनकी पत्नियों और युवा बेटियों के साथ सोता था। शॉको असहारा, जिम जोन्स और सामान्यतः सभी संप्रदाय नेताओं ने अपनी आज्ञा का उल्लंघन करने वाले को कठोर सजाएं दी हैं। ऐसे दुर्व्यवहार और कठिनाई के बावजूद उन अनुयायियों के लिए सबसे सख्त सजा धर्म से बहिष्कृत किया जाना होती थी। इन संप्रदायों के कुछ लोग धर्म से बहिष्कृत किए जाने पर आत्महत्या कर लेते थे।
संप्रदाय के नेता उन अनुयायियों को समाज से बाहर निकाल देते थे, जो अनियंत्रित होते थे। लोग अपनी जड़ों के बिना जिंदा नहीं रह सकते | यदि व्यक्ति को समाज से बाहर निकाल दिया जाए तो अलग-थलग व अकेला पड़ जाएगा और अंत में हार मान लेगा। यही वह तरीका है, जिसके जरिए मुसलमान अपने बीच मौजूद गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करते हैं ।
संप्रदाय त्याग की मांग करते हैं। त्याग के माध्यम से व्यक्ति को उस संप्रदाय में अपना विश्वास और निष्ठा साबित करनी होती है। संप्रदाय के अनुयायियों को यह विश्वास दिलाया जाता है कि वे अपना सब कुछ छोड़कर ही, यहां तक कि जीवन त्याग कर, ईश्वर की कृपा अथवा गुरु की प्राप्त कर सकते हैं। इसमें तर्क यह है कि किसी चीज के लिए जितना आप त्याग करेंगे, उतना ही उसको महत्व देंगे। जब आपकी मुक्ति दांव पर हो तो कोई भी त्याग कम होता है। मुहम्मद ने उनको जन्नत में शाश्वत जीवन, हूरों और 80 पुरुषों के बराबर यौन क्षमता का लालच दिया, जो उसमें भरोसा करते हों और उसके लिए कुर्बानी देने को तैयार हों। जब पुरस्कार इतना बड़ा हो तो उसे हासिल करने के लिए कुर्बानी भी उतनी ही बड़ी होनी चाहिए। अपने अनुयायियों को और अधिक कुर्बानी देने के लिए प्रोत्साहित करते हुए मुहम्मद ने कहा:
माजूर लोगों के सिवा जिहाद से मुंह छिपा के घर में बैठने वाले और अल्लाह की राह में अपनी जान व माल से जिहाद करने वाले हरगिज बराबर नहीं हो सकते। अल्लाह अपने जान व माल से जिहाद करने वालों को उनसे ऊंचा दर्जा देता है, जो घर बैठे रहते हैं। अल्लाह ने सब ईमान वालों के लिए अच्छे का वादा कर लिया है। लेकिन जो जिहाद करते हैं, लड़ते हैं, उनको अल्लाह ने खास इनाम के लिए उनसे अलग कर लिया है, जो घर में बैठे हैं। (कुरान. 4:95)
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यदि तुम अल्लाह और उसके रसूल में विश्वास करोगे तो इनाम मिलेगा, लेकिन वह इनाम उनको मिलने वाले इनाम के बराबर नहीं होगा, जो जिहाद छेड़ते हैं, अपनी जान और माल कुर्बान करते हैं और अल्लाह की राह में शहीद हो जाते हैं।
किसी संप्रदाय की आवश्यकताएं जितनी दुसाध्य होंगी, वह संप्रदाय उतना ही खतरनाक होगा। कुछ संप्रदाय आपको पूर्णकालिक सदस्य के रूप में तब तक नहीं स्वीकार करते हैं, जब तक कि आप बड़ी कुर्बानी देकर अपनी निष्ठा सिद्ध नहीं कर देते हैं | मुहम्मद ने अपने अनुयायियों को यह भरोसा दिलाया कि ये कुर्बानियां आवश्यक हैं और मजहब का हिस्सा हैं | संप्रदाय के लिए खर्च करना अथवा अपनी सारी संपत्ति संप्रदाय के नेता को सौंप देना आपकी आस्था और प्रतिबद्धता का परिचायक माना जाता है | संप्रदाय के नेता मनोरोगी नार्सीसिस्ट और छलने में उस्ताद होते हैं। इन्हें यह देखकर अच्छा लगता है कि लोग उनके लिए श्रमसाध्य कार्य कर रहे हैं और वे इससे खुद की ताकत का अहसास करते हैं, अपने सर्वशक्तिमान होने का आनंद लेते हैं । इनकी नार्सीसिस्टिक भूख अपने अनुयायियों की गुलामी और त्याग देखकर शांत होती है । उनके अंधे अनुयायी कुछ भी करेंगे, यहां तक कि जंग छेड़ेंगे, हत्याएं करेंगे, अपनी जान दे देंगे ताकि नेता की दृष्टि में अच्छे सिद्ध हो सकें। नेता अथवा मालिक बनने की तृष्णा में जीने वाले नार्सीसिस्ट के प्रभुत्व और नियंत्रण के लिए अनुयायियों की गुलामी की मानसिकता खाद का काम करती है। ऐसे लोग ताकत का आनंद लेते हैं और उनके अनुयायी इस कठोरता को, अपने नेता के उद्देश्य को सत्य मानने की गलती कर बैठते हैं।
आखिर अधिकांश पैगम्बर पुरुष ही क्यों हुए ? ऐसा इसलिए है, क्योंकि नार्सीसिस्म प्रमुखतः पुरुषों में होने वाली मनोविकृति होती है। यद्यपि कि महिलाएं भी नार्सीसिस्ट हो सकती हैं, फिर भी महिलाओं से अधिक पुरुष नार्सीसिस्ट हैं| परिणाम स्वरूप महिलाओं की तुलना में पुरुष पैगम्बरों, संप्रदाय के नेताओं, तानाशाहों की संख्या अधिक है। संप्रदाय पारंपरिक रूप से कठोर धार्मिक नियम-कायदों को लागू करते हैं । अनुयायी जब पूरी बारीकी से इन नियम-कायदों का पालन करते हैं तो वे इस इस विश्वास की ओर बढ़ने लगते हैं कि उन्हें दुखों से मुक्ति मिल जाएगी। वे इन मजहबी क्रियाकलापों के प्रति इतने आसक्त हो जाते हैं कि सोचने लगते हैं, इन्हें नहीं किया गया तो पाप होगा। ऐसी मान्यता फैला दी जाती है कि अल्लाह को खुश करने अथवा ज्ञान प्राप्त करने के लिए इन मूर्खतापूर्ण धार्मिक क्रियाकलापों का किया जाना अनिवार्य है। हालांकि इन मजहबी क्रियाकलापों (कर्मकांडों) का असली उद्देश्य अनुयायियों को फंसाए रखना और बांधे रखना होता है | वास्तविकता में इन मजहबी क्रियाकलापों का ईश्वर के साथ कोई संबंध नहीं होता है। ये नार्सीसिस्ट को अपने अनुयायियों के ऊपर अधिकाधिक नियंत्रण बनाने के लिए होते हैं ।
इस्लाम के मजहबी क्रियाकलाप अनिवार्य नमाज और रोजा विचारों और भावनाओं के प्रति असंवेदनशील बनाने का काम करते हैं । मुसलमानों को कुछ निश्चित खाद्य पदार्थों को खाने, संगीत सुनने और विपरीत लिंग से मेलजोल बढ़ाने से परहेज करने को कहा जाता है । यदि वह औरत है तो उसे चिलचिलाती धूप और गर्मी में भी बुर्के में रहना होता है, ढीला-ढाला कपड़ा पहनना होता है, गैर मुस्लिम परिवार व दोस्तों से संबंध खत्म करना होता है। ये कष्ट और त्याग अनुयायियों को विश्वास दिलाता है कि वे इनके बदले में अच्छा प्रतिफल पाएंगे। अनुयायी इन धार्मिक क्रियाकलापों और त्याग के प्रति जुनूनी हो जाता है। जब वह कष्ट सहता है तो सोचता है कि दूसरी दुनिया में अपने लिए ईश्वर की कृपा और इनाम इकट्ठा कर रहा है और इस तरह वह उल्लासोन्माद व आनंद से भर जाता है। विडम्बना यह है कि अनुयायी जितना अधिक कष्ट सहता है, उतना ही आनंद व संतोष का अनुभव करता है।
किसी संप्रदाय में विश्वास करने वाले लोगों द्वारा ई श्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए स्वेच्छा से अपने शरीर को पीड़ा पहुंचाना असामान्य बात नहीं है । “कष्ट के बिना फल नहीं मिलता ' की कहावत पर विश्वास करना हम मनुष्यों की प्रवृत्ति है। प्राचीन काल में हमारे पुरखे ई श्वर को प्रसन्न करने के लिए त्याग किया करते थे। बड़ा प्रतिफल प्राप्त करने के लिए वे बड़ा बलिदान देते थे | कुछ संस्कृतियों में विश्वास इतना गहरा था कि वे लोगों और अपने बच्चों तक की बलि दे देते थे। इस्लाम (साथ ही अन्य संप्रदायों) पर अमल करने में आने वाली कठिनाई और आज्ञाकारी व धर्मात्मा बने रहने के लिए मुसलमानों को बडी कुर्बानी देने का हुक्म इस्लाम की मुख्य अपील है । संप्रदाय पर अमल करना जितना कठिन होगा, यह उतना ही सत्य प्रतीत होगा। जो कुर्बानी नहीं देते हैं, वे अपराधबोध से ग्रस्त होते है। अक्सर कुर्बानी देने पर जो तकलीफ होती, उससे कहीं अधिक कष्ट कुर्बानी नहीं देने के अपराधबोध पर होने लग
"हम सब स्वच्छता फैलाएंगे
#कविता
આ પોસ્ટ મે અહિ બે કલાક પહેલા જ મૂકી છે.
ફરીથી આ પોસ્ટ મૂકવાનુ કારણ એ છે કે આ પોસ્ટથી નરેન્દ્રભાઈ પરમારને એવુ લાગે છે કે આનાથી બીજાની ઈજ્જતની નિલામી થઈ રહી છે.
તો પ્લીઝ તમે મને કોમેન્ટમા જરુરથી જણાવો આનાથી કોની ઈજ્જતની નિલામી થઈ રહી છે.
નરેન્દ્રભાઈની પોતાની મારી પોસ્ટ પરની કોમેન્ટમા એમણે મને આમાથી એક ઓપ્શન ચૂઝ કરો એવુ લખ્યુ છે શુ એ યોગ્ય છે?
ઘણા બધા લોકો ફની પોસ્ટ મૂકે છે, વાંચે છે, કેટલાક કોમેન્ટ કરે છે., તો કેટલાક ઈગ્નોર કરે છે.
નરેન્દ્રભાઈને વાંધો હોય તો એમણે પોસ્ટ ઈગ્નોર કરવી જોઈએને?
આવા લોકોને શુ કહેવુ ?
👇Save Your Friend's Status👇
#H_R
This year, Dada Bhagwan’s Guru-Purnima 2025 was celebrated at Jacksonville, USA with great devotion and enthusiasm, including a Special Darshan, Bhakti, a cute GNC Parade, and much more in the pious presence of Pujyashree Deepakbhai.
To read more about the Guru Purnima celebration, click here: https://dbf.adalaj.org/5LBtfMCX
#blog #blogpost #GuruPurnima #celebration #dadabhagwanfoundation
ഓർമ്മയിലെ നിഴൽ
മങ്ങിയ സാന്ധ്യവെളിച്ചത്തിൽ,
ഒരു രൂപം മാഞ്ഞുപോയി.
അകലെ എങ്ങോ മറഞ്ഞുവോ,
ഓർമ്മകൾ മാത്രം ശേഷിച്ചുവോ?
ഒരു ചിരി, ഒരു വാക്ക്,
ഇരുമിഴികളിലെ സ്നേഹം.
ഇനിയില്ല തിരികെ, ഒരിക്കലും,
നിഴലായ് നീ മാഞ്ഞുവല്ലോ.
ഓരോ ദിനവും തേങ്ങുന്നു ഞാൻ,
നിൻ ഓർമ്മയിൽ അലിയുന്നു.
എങ്കിലും അറിയുന്നു, നീയെൻ ഹൃദയത്തിൽ,
ഒരു നോവായ് എന്നും ജീവിപ്പു.
മഴത്തുള്ളിയായ് നീ എൻ കവിളിൽ,
തഴുകുന്നുവോ മെല്ലെ?
കാറ്റായ് നീയെൻ കാതിലോതുന്നുവോ,
"ഞാൻ നിനക്കരികിലുണ്ട്"?
കാണാതായത് വെറും ശരീരമാണ്,
ആത്മാവ് മായാതെ എന്നും.
എൻ ഹൃദയത്തിൻ കോണിലെങ്ങോ,
നീ ഒരു നോവായ് ജീവിക്കുന്നു.
✍️തൂലിക _തുമ്പിപ്പെണ്ണ്
*तेरे हिस्से की रोशनी*
चाहिए जो… वो वक़्त के साथ हम ढूंढ़ लेंगे,
कब से वह चाह हमारी, सनम की संग रह नहीं।
कोई जहाँ जवाब सच न रोये जाए,
ना जाने अपना वक़्त भी क्या अजीब सिलसिला प्यारा सा रह गया।
जो राम मेरे करीब से आए,
कहीं न कहीं वो हँसते हुए दम निकल रहे।
मुझे तो तेरे हिस्से में,
मेरी तक़दीर की वो रौशनी से ही चाहत है।
तेरे नाम की ख़ामोशी, अब मेरी दुआ बन गई है,
इश्क़ का जवाब, अब रब की इनायत सी लगती है।
जो पल टूटे नहीं थे, वही रूह बन गए हैं,
और जो पास थे, अब दूर से मुस्कुरा रहे हैं।
_Mohiniwrites
Continue log in with
By clicking Log In, you agree to Matrubharti "Terms of Use" and "Privacy Policy"
Verification
Copyright © 2025, Matrubharti Technologies Pvt. Ltd. All Rights Reserved.
Copyright © 2025, Matrubharti Technologies Pvt. Ltd. All Rights Reserved.