क्या वाकई कोई हमारा अपना होता है जिसे हम अपना समझ बैठते है ??? और इसी कश्मकश में हमारी आधी जिंदगी कट जाती है पर तब भी हम कोई अपना नहीं ढूंढ पाते है।आप सबको यही लगेगा कि यह भला कैसी बात हुई ? हमारे पास हमारा घर है, परिवार है,जीवनसंगिनी है,तो फिर हम भला कैसे अकेले हुए ?? पर जीवन में कभी कभी ऐसी परिस्थिति आती है जिस वक्त हम खुदको पूरी तरह अकेले पाते है ,कोई हमारे साथ नहीं होता उस डगर पर चलने के लिए,हमें अकेले उस डगर पर चलके उन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।इसीलिए मैं फिर पूछती हूं कि वाकई कोई हमारा अपना है इस पूरी दुनिया में या में अकेली हूं इस दुनिया में ???