**“तुम्हें शायद खबर भी नहीं,
पर मेरी मोहब्बत ने चुपचाप तुम्हारे नाम की तसब्बुर में
कितनी रातें जागकर अपने ख़्वाबों को सींचा है।
मैं इंतजार करना तो चाहता हूँ,
पर डरता हूँ कि कहीं मेरी मोहब्बत का बोझ
तुम्हारी मुस्कुराहट से हल्का सा नूर भी छीन न ले।
तुम्हें क्या बताऊँ…
तुम्हारी हर मुस्कान मेरे दिल की दुनिया में
ईद की चाँदनी की तरह उतरती है,
और मैं बदनसीब बस दूर से देख कर
अपने दिल को समझा लेता हूँ कि
‘बस इतना ही काफ़ी है।’
मैं एक तरफ़ा सही…
पर मेरी मोहब्बत किसी तरफ़ा नहीं,
वह तो तुम्हारे नाम की वो आरज़ू है
जिसने मेरी हर धड़कन को इबादत की तरह
तुमसे बाँध दिया है।
काश तुम जान पाती कि
मैं हर दुआ में तुम्हें ही माँगता हूँ—
बिना ये उम्मीद किए कि तुम मिलोगी भी या नहीं।
मैंने मोहब्बत सीखी ही तुमसे है,
और इज़हार छुपाना भी तुमसे ही।
तुमसे कह नहीं पाता,
पर यह दिल हर पल तुम्हारा ही रक़्स करता है,
मानो उसकी सारी दुनिया
सिर्फ़ तुम्हारे इर्द-गिर्द घूमने के लिए बनी हो।
मेरी मोहब्बत शायद तुम्हें मिले या न मिले,
पर मेरा इज़हार हमेशा तुम्हारे नाम पर
वक़्त की किताब में
खामोशी से लिखा रहेगा।”**