मन के विचलित लोग
मन के विचलित लोग बड़े अजीब होते हैं,
हँसते हैं भीड़ में, भीतर से अकेले होते हैं।
चेहरों पर मुस्कान का नक़ाब लगाए फिरते,
और रातों को अपने ही सवालों से लड़ते हैं।
हर बात पर चुप्पी, हर चुप्पी में शोर,
इनकी खामोशी में भी छुपा होता है कोई शोर।
किसी से कह न पाएँ अपना दर्द-ए-दिल,
काग़ज़ों पर बहा देते हैं अपने आँसू हर पल।
ये वो लोग हैं जो खुद से रोज़ हारते हैं,
और दुनिया के सामने जीत का ढोंग करते हैं।
भीतर बिखरते हैं, बाहर सधे रहते हैं,
अपने ही टूटे सपनों पर पहरे रहते हैं।
इनके शब्दों में अक्सर तल्ख़ी बस जाती है,
क्योंकि खुशियों ने इन्हें देर से पहचाना है।
हर रिश्ता बोझ लगे, हर वादा चुभता है,
जब मन टूटा हो, हर सहारा डगमगाता है।
ग़लत नहीं ये, बस बहुत थके हुए हैं,
दुनिया के शोर से थोड़े डरे हुए हैं।
इन्हें दोष न देना, इन्हें बस समझना है,
इनके भी भीतर किसी ने रोशनी भरना है।
कभी इनसे भी मुस्कान की कीमत मत पूछो,
क्योंकि इन्होंने आँसुओं से उसे खरीदा है।
मन के विचलित लोग बस यही सिखाते हैं,
कि मजबूत वही, जो भीतर से टूटा है।
आर्यमौलिक