मोहब्बत के चालबाज़
मोहब्बत के चालबाज़ बड़े माहिर निकलते हैं,
दिल की शतरंज में हर रोज़ वज़ीर बदलते हैं।
वो मुस्कानें पहनकर आते हैं बाज़ार-ए-वफ़ा,
और सस्ते में ख़रीद कर महंगे जज़्बात बेचते हैं।
कभी वादों की खुशबू, कभी सपनों का धुआँ,
हर बात में नया जाल बुनते चलते हैं।
जो टूटे दिलों की आवाज़ भी न सुन पाए,
वो इश्क़ के मसीहा बनकर सजते-संवरते हैं।
उनकी बातों में शहद है, निगाहों में तीर,
किसी को मरहम, किसी को खंजर देते हैं।
जहाँ सच बोलने की कीमत बस आँसू हो जाए,
वहाँ ये झूठ को भी सोने में तोलते हैं।
इश्क़ उनके लिए मौसम की तरह आता-जाता,
ना कोई जड़, ना ही कोई घर बनता है।
जिस दिल में हो सुकून की सच्ची सी आग,
वहाँ इनका हर नक़ाब पिघलता है।
ओ मोहब्बत के चालबाज़, सुनो इत्मिनान से,
हर खेल का हिसाब किसी रोज़ होता है।
दिल अगर तुम्हारे लिए मोहरा है आज,
कल वक़्त तुम्हारा खिलाड़ी होता है।
क्योंकि वफ़ा कोई सौदा नहीं बाज़ारों का,
ना ही ये पलभर का कोई तमाशा है।
ये तो ऐसा सच है जो लिखता रहता है,
उनके नाम भी, जो इसे धोखा समझते हैं।
आर्यमौलिक-1998