खुद को कैसे रखूं
तेरी चाहत में मैं खुद को कितना फ़िदा रखूं,
याद में तेरी खुद को ज़िन्दा रखूं या मुर्दा रखूं।
हर साँस में तेरा ही नाम उतर आता है,
बताओ इस धड़कते दिल को अब कितना बहला रखूं।
तेरी आँखों की नमी मेरी तन्हाई बन गई,
इस खामोशी को सीने में कब तक सजा रखूं।
तू पास नहीं, फिर भी हर लम्हा साथ है,
इस झूठे सहारे को किस हद तक सच्चा रखूं।
कभी लगता है छोड़ दूँ सब तेरा नाम लेकर,
कभी डरता हूँ ज़िन्दगी से भी दूर ना चला जाऊं।
तेरी बेरुख़ी मेरे सब्र की इंतिहा है,
या तो इश्क़ छोड़ दूं या खुद को मिटा रखूं।
तो बता ऐ मोहब्बत… ये कौन-सा रिश्ता है,
जिसे निभाऊँ तो टूटूं, जिसे तोड़ूं तो बिखर जाऊं।
तेरी चाहत में मैं खुद को कितना फ़िदा रखूं,
याद में तेरी खुद को ज़िन्दा रखूं या मुर्दा रखूं…
आर्यमौलिक