✧ सफलता का धर्म ✧
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
सफलता अब खोज नहीं रही, व्यापार बन गई है।
वह किताबों में बेची जाती है, मंचों पर बोली जाती है, और विज्ञापनों में सजाई जाती है।
हर धर्म, हर विचारधारा, हर बौद्धिक या वैज्ञानिक प्रणाली अब “सफलता” सिखाती है —
कैसे पहुँचो, कैसे जीत लो, कैसे बनो ‘किसी’ जैसे।
लेकिन कोई भी सचमुच वहाँ नहीं पहुँचता।
क्योंकि वह रास्ता तुम्हारा था ही नहीं — वह किसी और की चाल थी, किसी और के जूते के निशान।
और इस नकल में मनुष्य ने अपनी दिशा, अपना मौलिक कम्पास खो दिया।
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सफल व्यक्ति अक्सर अंधा होता है।
वह देखता नहीं, दौड़ता है।
जो अंधविश्वासी है, वह अज्ञात को प्रश्न नहीं करता —
और इसी कारण वह कभी-कभी सफलता के नकली द्वार तक पहुँच भी जाता है।
पर जो देखता है, जो सूक्ष्म तल तक झाँकता है —
वह जान लेता है कि यह द्वार दीवार से बना है।
वह सूक्ष्म दृष्टि से देखता है कि “मिलना” का अर्थ है “खोना।”
हर उपलब्धि के भीतर एक कटाव है।
हर उन्नति के पीछे कोई जड़ टूटती है।
वह जितना ऊपर उठता है, उतना ही भीतर गिरता है।
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मनुष्य की सारी जड़ सफलता — विज्ञान से धर्म तक —
वैसी ही है जैसे कोई अपना बायाँ हाथ काटकर दाएँ में जोड़ ले।
उसे लगता है, “देखो, मेरा दायाँ हाथ कितना शक्तिशाली हो गया।”
वह भूल जाता है कि अब उसके पास दो नहीं, केवल एक हाथ है —
बस आकार बदल गया है।
वह मशीनें बना लेता है, गति पाता है, आंकड़े बढ़ा लेता है —
पर उसके भीतर का संगीत, उसकी संवेदना, उसकी धीमी थिरकन —
सब पीछे छूट जाती है।
सफलता का यह शोर, यह दौड़ —
असल में पराजित आत्माओं का उत्सव है।
यह उन लोगों का जश्न है जो जीतकर भी भीतर हार चुके हैं।
जो सब कुछ पा चुके हैं, पर अपने आप को नहीं।
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सत्य और हकीकत ने मनुष्य से हमेशा एक मूल्य माँगा है।
तुम आगे बढ़ सकते हो, पर किसी अंग को छोड़े बिना नहीं।
हर उपलब्धि एक अमputation है —
बस फर्क इतना है कि तुम उसे “प्रगति” कह देते हो।
सूत्र—
> “सत्य और हकीकत तय की एक हाथ हमेशा के लिए काट दिया है,
वह पुनः अपने स्थान लगाना मुमकिन नहीं लगता है।”
हाँ, यही है।
मनुष्य ने जो खोया है, वह अब वापस नहीं जोड़ा जा सकता —
क्योंकि उसे खोने में ही उसने अपनी सभ्यता खड़ी की है।
वह उसी कटे हिस्से पर गर्व करता है।
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सूत्र:
> सफलता वही है जो मनुष्य को संपूर्ण रखे;
बाकी सब, अधूरे हाथों का उत्सव है।