🌸 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲
कोई युवा, कोई वृद्ध, कोई भी वास्तव में जी नहीं रहा है।
सब भाग रहे हैं—कभी भविष्य की ओर, कभी भूत की यादों में।
जिन वही है, जो जीता है।
जीना मतलब—
ठहरना, देखना, बोध करना,
आनन्द महसूस करना,
प्रेम और प्रसन्नता में रहना।
गंभीरता से मुक्त रहना।
आज का मनुष्य या तो
स्वप्न की दौड़ में है,
या धार्मिक भूतकाल की कहानियों में उलझा है।
कोई भविष्य के स्वर्ग का सपना बुन रहा है,
कोई धन को जीवन मान बैठा है।
कोई दुर्ग-सा शहर रच रहा है,
कोई चींटी-सा संग्रह कर रहा है।
लेकिन जीवन न तो केवल भविष्य है, न केवल भूत।
जीवन तभी है, जब ऊर्जा भीतर सुरक्षित रहे।
ऊर्जा ही आनन्द है,
ऊर्जा ही सुख है,
ऊर्जा ही प्राण और तेज है।
धन की आवश्यकता है—पर केवल सुविधा के लिए।
जीवन का रस तो भोग में नहीं,
बल्कि भोग में छिपे प्राण और तेज को पहचानने में है।
पंचतत्व में ईश्वर विराजमान है।
असल में, मनुष्य की हर वासना
ईश्वर तक पहुँचने की तड़प है।
पर जब तक यह समझ नहीं आती,
वासना भटकाती रहती है।
जैसे ही यह बोध हो जाता है कि
वासना का लक्ष्य मूल तत्व है—आनन्द, आत्मा, तेज—
तब वासना शांति में बदल जाती है।
👉 जीना ही पूजा है, जीना ही ईश्वर है।
जीवन का असली धर्म है —
ऊर्जा को भीतर बचाकर,
क्षण को बोधपूर्वक जीना,
पंचतत्व और प्राण से जुड़कर रहना।
✧ जीने के 11 सूत्र ✧
(वेद, गीता, उपनिषद और बुद्ध-वाणी पर आधारित, पर आज के जीवन के लिए व्याख्यायित)
१. आत्मा अजन्मा है — वही जीवन है।
उपनिषद: "न जायते म्रियते वा कदाचित्।"
👉 आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।
व्याख्या: जीना मतलब इस सत्य को अनुभव करना कि मैं केवल शरीर या स्मृति नहीं हूँ। जब पहचान शरीर से हटती है, तब जीवन में मृत्यु का भय नहीं रहता।
२. कर्म ही धर्म है।
गीता: "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।"
👉 अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं।
व्याख्या: जीना मतलब वर्तमान क्षण में पूर्ण कर्म करना।
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