"छुपी मोहब्बत का किस्सा"
उसने देखा भी, और अनजान भी बन गया,
वो मेरा था भी... और सबका बन गया।
खामोशी मे छुपी मोहब्बत की दास्तां है,
जो लफ्जों से नही... बस आंसुओं से बया है।
वो जो मेरे दिल का पहला कैद बना,
खुद ही आजादी दे कर... परिंदा सा उड़ गया।
क्या कहूं, मेरी चाहत बे–नाम सी है,
जो रिश्तों के दामन मे भी... तन्हाम सी है।
दुनिया के डर से लब खामोश रहे,
मगर दिल की धड़कने बस उसी का जिक्र कहे।