थे जख्म हमारे सीनेमें ,ओर हाथमें उनके खंज़र था।
वो सामने आकर वार करे,बस देखनेवाला मंज़र था।
हमने चाहा हरियाली हो,ओर चारो तरफ खुशहाली हो।
कुछ बीज भी बोये प्यारभरे ,पर दिल ही उसका बंजर था।
जिसको मिलता था जितना, उसको उतना कहांँ सुहाता था।
खुशीयोंकी खोजमें निकला जग "उरु" ग़मसे भरा समंदर था।
✍ उर्वी पंचाल "उरु" नवसारी