महाशिवरात्रि पर्व में, करते शिव का ध्यान।
आदि शक्ति दुर्गा कृपा, कष्ट हरें श्री मान।।
धरा प्रफुल्लित हो रही,निकली शिव बारात।
शिव की शुभ आराधना, कष्टों को दें मात।।
गंग निकलती जटा से, नीलकंठ है नाम।
चंद्र बिराजे भाल पर, सृष्टि सृजन का काम।।
डम-डम डमरू है बजे, गूजें स्वर अविराम।
सर्जक अक्षर ध्वनि के, दुख-संहारक काम।।
तीन नेत्र के शंभु जी, महिमा बड़ी अपार।
खुला तीसरा नेत्र जब, जगका बंटाढार।।
भस्म लगा कर बैठते, योगी का धर वेश।
हिम गिरि की है कंदरा, शिव शंकर का देश।।
सिंह वाहिनी भगवती, दुष्ट दलन संहार
दत्तात्रेय गणेश का, वंदन बारंबार।।
भोले भंडारी कहें, या फिर पशुपतिनाथ।
औघड़दानी शंभु जी, झुका सदा यह माथ।।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*
जबलपुर में कचनार सिटी में 70 फुटी विशाल शिव मूर्ति