#भावाभिव्यक्ति
ढूँढती है मेरे शब्दों मे मुझे दुनिया ,
तय अपराध इसी से सब है |
मगर एक तू ही जानती है मै शब्दों में कहाँ
आ पाती हूँ | शब्दो की निपुणता अर्थ में हीनता
मुझे दबाते है | जो तुझसे व्यक्त है वह अव्यक्त
है , किसी को कहाँ कब बता पाती हूँ | कोई
नही मेरा तेरे सिवा माँ ! समझाने बैठती हूँ तो
समझा भी न पाती हूँ | तू जाने भीतर की,
है ! भीतर ही जो न मै खुद ही खुद को समझ पाती हूँ|