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Ruchi Dixit

Ruchi Dixit Matrubharti Verified

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शान्त मन अमृत है !
अशान्त मन विष !
मन ही राहत !
मन ही तपिश !
मन ही जीत है !
मन ही हार !
मन के पीछे सब संसार !
मन के आगे है सरकार ।

-Ruchi Dixit

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कबीरदास जी का मैं एक संतरुप में आदर करती हूँ । उनके प्रत्येक शब्द- वाणी गूढ़ प्रकृति के रहस्योपार्जन है । यह सहज ही सबको समझ आये ऐसा सौभाग्य ईश्वर करे हम सबको प्राप्त हो ।

-Ruchi Dixit

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वहाँ पर जो है वो मेरा नहीं !
मगर जिसे मैं देखती हूँ वह मेरा ही है !
मैं हूँ ! !
समझ में जो आता है अन्तर में नहीं बिठा पाती ।

-Ruchi Dixit

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अन्तर विचार संतुष्टि पोषक होते हैं । जैसे जल अलग -अलग पात्र में पात्र के अनुरूप आकार बदल लेता है किन्तु गुण ,धर्म , स्वभाव से जल ही होता है । यह बाहरी मान्यताओं से परे भी हो सकता है ।

-Ruchi Dixit

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मानने का एक अर्थ न मानना होता हैं ।
संशय मानने में ही है ।

-Ruchi Dixit

एक दिन मुझमें शब्द नहीं होंगे !
शायद...!
वहीं एक सच्चा अर्थ होगा ।

-Ruchi Dixit

बाहर गति रुप में
भीतर मतिरुप में
एक ही चल रहा है प्रतिरुप में ।

-Ruchi Dixit

न कोई अच्छा
न बुरा है
उस माँ के लिए जिसने सुर -असुर जना है । सबकी जमीन अलग है , सबका मकान बना है । वह संतुलन देती । संतुलन ही जीवन यात्रा है । संघर्ष संतुलन का हिस्सा है । जीत -हार केवल शब्द भाव हैं जो असंतुलन का हिस्सा हैं ।

-Ruchi Dixit

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“माँ ”
सृष्टि निर्माण की आधारभूत परम्परा है ।
यह रिश्ता परमात्मा से जोड़ दिया तो वह खुद को भी रोक नहीं पाती अपनी संतान से मिलने को ,,,

-Ruchi Dixit

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सुनो ! मेरी कभी मत सुनना !
जो तुम कहो अब वह मुझमें तुम्हारे मन , इच्छा , विवेक ,समझ से उत्पन्न प्रेरणा को सुनाई पड़े । और अपने कर्म से कहें ..!

-Ruchi Dixit

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