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शास्त्र व्यक्तिगत विचारों से सदैव श्रेष्ठ और सर्वथा स्वीकार्य है । किन्तु केवल समझ की गहनता और प्रकाश में, केवल यथावत शब्दों का समझ में रूपान्तरण पर्याप्त नही।। - Ruchi Dixit
पवित्रता केवला गुण हीनता की अनुगामी है। - Ruchi Dixit
वो!!! बिना बताये मेरी बातो को समझे जो न समझे तो न समझे!!!!! - Ruchi Dixit
जिन्दगी यूँ भयपूरक न थी तब, जब अनगिनत समस्याओं से जूझ कर भी अन्तर कल की फिकर न थी। - Ruchi Dixit
संयम कोई दिखावा नही यह व्यवहार है चेतना का जो सोये शरीर में भी जाग्रत है।। - Ruchi Dixit
माना कि गिरे हैं तो क्या ? उठने की कोई चाह नही? खाई गहरी है तो क्या ?निकलने की कई राह नही? कौन बेदाग है दाग सही ! क्या दाग से जीवन का आभाष नही? ,,,,,,- Ruchi Dixit
उस आत्मा से भला क्या छिपा है जो हमे निरंतर भीतर बाहर देख रही है। हमारा आँख मिलाना यदि स्वंय की श्रेष्ठता देखनी है तो यह दूषित है । किन्तु जो अपनी सारे अवगुनो को स्वीकार कर उसके त्याज्य भाव के साथ आत्मा मे समर्पण का भाव रखता है। और अपनी ही आत्मा से सामर्थ्य आग्रह करता है । वह आईने के समक्ष खड़ा हो सकता है। और उस सत्य को देखने की लालसा रख सकता है।। - Ruchi Dixit
चाहते हैं खुशी सभी खुशियों के आस - पास तमाम भीड़ जमी कौन पूछता है उदासी भला गमे मुलाकात भला किसको पड़ी।। - Ruchi Dixit
कई मासूम प्रश्न अपने अन्दर अनगिनत प्रश्न और उत्तर समेटे होते हैं। जो कल्पनाओं से बाहर वास्तविकता का दर्पण होते हैं।। - Ruchi Dixit
आत्मग्लानि पश्चाताप दूसरे के सही होने का प्रमाण नही बल्कि दूसरे के व्यवहार से प्रभावित प्रत्युत्तर होता है।। - Ruchi Dixit
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