मैं और मेरे अह्सास
माहिर
मुस्कराते हुए दर्दों गम छुपाने में माहिर हो गये हैं l
दिखावे के खुश होना दिखाने में माहिर हो गये हैं ll
सख्त जिन्दगी हररोज इम्तिहान लेती ही रहती हैं l
जख्मों के निशान को मिटाने में माहिर हो गये हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह