आज हमारी निशानी
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आज बड़ा गंभीर प्रश्न हमारे सामने आकर
हमारी आँखों में आँखें डालकर हमसे पूछ रहा है
कि बता रे तू आज का मानव- तुझे क्या हो गया है?
हमने कहा - हमें क्या हुआ बरखुरदार
और वैसे भी होना क्या था?
हमारे पुरखे बेवकूफ थे, बस! ये हमें समझ आ रहा है
बस उसी का भूल सुधार कर रहे हैं,
प्रेम-प्यार, भाईचारा, एकता में भला रखा क्या है?
हम आज उसका नामोनिशान मिटा रहे है
अपने पुरखों की करनी का दंड भला हम क्यों भोगें?
वो जो लकीर खींचते रहे उम्र भर
हम उसी लकीर को और बड़ा भला क्यों खींचे?
वो दौर और था, जब वे पैदा हुए
भूखे, प्यासे, अभावों में जिए
सुख-सुविधाएं मयस्सर नहीं हुईं
क्योंकि वे इस लायक ही नहीं रहे।
बस मान-मर्यादा, सामंजस्य, एकता, सहयोग
अपनापन, मानव मूल्यों की गाँठ कसकर पकड़े रहे,
समय के साथ बढ़ ही नहीं सके
और फिर हमें देकर ही क्या गए?
जो हम उनको अपने लिए नज़ीर मानें, उसी पर राह चलें।
अब समय बदल गया, तो हम भी बदल गये हैं
दकियानूसी सोच से निरंतर आगे बढ़ रहे हैं
अपने सुख-समृद्धि के लिए जतन करने में लगे हैं,
अपनों की लाशों पर पैर रखकर
आगे बढ़ने में संकोच नहीं कर रहे हैं,
रिश्ते नाते हमें महज़ किताबी लगते हैं
सच कहें तो ये सब महज खिताबी हैं
जिससे कभी पेट नहीं भरता
ईमानदारी से कहूँ, तो आज इसे कोई भाव भी नहीं देता।
इसीलिए तो रिश्ते बेमानी, स्वार्थी हो रहे हैं
किसी के मरने जीने से अब हम व्याकुल नहीं हो रहे हैं
प्रेम, प्यार, भाईचारा, संवेदना, मर्यादा को
बहुत गहराई में दफन कर दिए हैं,
बिना स्वार्थ किसी को नमस्कार भी नहीं कर रहे हैं।
पड़ोसी की मौत पर भी अब हम
बेवजह परेशान नहीं हो रहे हैं,
क्योंकि हम तो अपनों की मौत पर भी
अब आँसू बहाने का समय तक नहीं निकाल पा रहे हैं।
क्योंकि हम सब इतने व्यस्त हो गए हैं
कि ये सब अब हमें समझ ही नहीं आ रहे हैं।
वैसे भी क्या रखा है? इन सब पचड़ों में पड़ने के
भला मरने के बाद कौन देखने आ रहा है,
फिर समय के साथ चलना आज की जरूरत है
जो पीछे रह गया, उसे मुड़कर कोई देखता भी नहीं
जब तक जियो, सिर्फ अपना देखो
यही आज की जरूरत और बुद्धिमानी है
जिसे इतनी भी समझ नहीं, वो सबसे बड़ा अज्ञानी है।
इसलिए ऐ प्रश्न! तू इन बेकार के लफड़े में मत फँस
वरना तेरी भी खत्म जिंदगानी है,
इतिहास तो महज एक कहानी है
तेरा प्रश्न ही आज के समय के हिसाब से
सच मान बिल्कुल ही बेमानी है,
जो मैंने कहा- यही आज हमारी निशानी है,
और आज हम सबकी एक सी कहानी है ।
सुधीर श्रीवास्तव