मेरी कलम
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ये आपने आप ने क्या किया?
मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया
मेरी कलम की धार को छूने का साहस कर दिया।
मैं तो आपको कुछ बताना नहीं चाहता था
फिर भी अब आज बता ही देता हूँ,
ध्यान से सुनिए और होशोहवास में रहिए।
जैसा मैं और मेरा व्यक्तित्व है
वैसे ही मेरी कलम और उसकी धार है,
न चाहते हुए भी ठाने रहती रार है।
मेरी कलम लीक से हटकर चलने को उत्सुक रहती है
कैकेई, मंथरा और रावण भी बेबाकी से लिखती है,
जो अपनी आँखो से देख लेती है,
बस! उसे लिखने को मचल उठती है।
मेरे चक्कर में बेचारी जाने कितनी आँखों में चुभती
आलोचनाओं का शिकार होती
पीठ पीछे गालियाँ भी खाती है,
पर अपनी आदत से बाज नहीं आती है।
मगर जब अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाती
तब आम हो या खास अपनी रौ में आकर
सबको धमकाने पर उतर आती है,
यमराज तक को उसकी औकात बताने में भी
तनिक संकोच नहीं करती है।
सच तो यह है! कि मेरी कलम सिर्फ लिखती ही नहीं
हँसाती, रुलाती, गुदगुदाती और आइना भी दिखाती है,
जो लिखना चाहती है, बेलौस लिखती है
कोई कितना भी बड़ा तुर्रम खाँ हो
कभी किसी से नहीं डरती है।
इतना तक ही होता तो भी ठीक था,
मेरी कलम शुभचिंतक बन मुझको भी राह दिखाती है,
यमराज मित्र होने के मेरे गुरुर को भी
पल भर में ही मटियामेट कर देती है,
स्वार्थ के बीच का अंकुरण से पहले ही
अस्तित्व मिटाकर खुश हो जाती है,
सच कहूँ तो मेरा अंदाज निराला है,
कलम और यमराज मित्र की यारी से ही जीवन चलता है।
अब यह आपके सोचने का विषय हो सकता है
कि आखिर कलम और यमराज संग
मेरा इतना याराना भला निभता कैसे है?
पर मैं तो इन्हीं दोनों को जीवन का देवता मानता हूँ
और हाथ जोड़कर सुबह - शाम प्रणाम करता हूँ,
अपने कलम की गौरव गाथा को अब यहीं विश्राम देता हूंँ,
आप सब यही चाहते हैं न
तो मैं भी फिर मिलने के वादे के साथ विदा लेता हूँ,
अपनी प्रिय कलम और मित्र यमराज का भी
कोटि-कोटि आभार, धन्यवाद करता हूँ,
और अपनी यात्रा पर आगे बढ़ता हूँ।
सुधीर श्रीवास्तव