Hindi Quote in Poem by Sudhir Srivastava

Poem quotes are very popular on BitesApp with millions of authors writing small inspirational quotes in Hindi daily and inspiring the readers, you can start writing today and fulfill your life of becoming the quotes writer or poem writer.

राष्ट्रपिता होने का दंड
***************
अभी मैं नींद की गोद में जा ही रहा था
कि प्रिय मित्र यमराज आ गये,
बड़े इत्मीनान से सोफे पर पसर गये।
मैंने पूछा - कहो मित्र कैसे आना हुआ
या पेट पूजा के चक्कर में आगमन हुआ।
यमराज ने कहा - प्रभु! मैं बड़े असमंजस में हूँ
जो खाया पिया वो हजम हो गया
पर मेरा असमंजस दूर नहीं हुआ।
आप लोग राष्ट्रपिता की जयंती मनाते हो
और राष्ट्रमाता का नाम तक छुपाते हो।
चलो मान भी लूँ, तो फिर यह भी पता लगना ही चाहिए
कि राष्ट्र पुत्र और राष्ट्र बहू किसको कहोगे?
या सिर्फ राष्ट्रपिता की माला ही जपोगे?
यमराज की बात सुन मैं चकरा गया
जो खाया पिया था, सब गायब हो गया ।
फिर उसे समझाया - नाहक तूने आने का कष्ट उठाया
नेहरू गाँधी की आत्मा तो यमलोक में ही है
फिर इसका उत्तर तू उनसे क्यों नहीं ले पाया?
यमराज व्यंग्य बाण चलाते हुए बोला -
वाह प्रभु! मैं आपको बेवकूफ दिखता हूँ
जो आधी रात आकर मैंने आपको जगाया?
मैंने नेहरु की आत्मा से पूछा तो उनका उत्तर था
मुझे क्या पता कि गाँधी जी को राष्ट्रपिता किसने बनाया?
फिर गाँधी जी से जब मैंने पूछा
कि आप राष्ट्रपति कैसे बन गए?
तो बेचारे गाँधी जी रुआँसे हो कहने
राष्ट्रपिता बनकर भला, मैंने कौन सा सुख मैंने पाया।
तू धरती लोक आता जाता रहता है
तू ही बता कि राष्ट्रपिता की आड़ लेकर
मुझे क्या-क्या नहीं कहा जा रहा है,
आरोप लगाया जा रहा है, गालियाँ दी जा रही हैं
यहाँ तक कि मेरी हत्या भी हो गई ,
पर क्या आज भी सूकून की साँस लेने का
वास्तव में मैंने अधिकार पाया?
इससे अच्छा तो मैं बापू ही ठीक था
पर जाने किस पाप के दंड स्वरूप
राष्ट्रपिता का तमगा मेरे हिस्से में आया ।
न कल सुकून था और न आज ही है
जाने कितने घाव अभी तक दिए जा रहे हैं
अपनी सुविधा, स्वार्थ के अनुसार ही
हम लोगों द्वारा उपयोग किए जा रहे हैं,
फिर सारा दोष भी मेरे ही मत्थे मढ़े जा रहे हैं।
मेरी स्थिति ठीक रावण जैसी हो गई है,
जिसे राम जी ने मारकर तार दिया था
फिर भी लोग हर साल उसका पुतला बनाकर जला रहे हैं
उसकी आत्मा का सुख-चैन लगातार छीन रहे हैं,
ठीक वैसे ही मुझे भी
जहाँ-तहांँ पुतला बना खड़ा कर दे रहे हैं।
कभी माला पहनाकर बड़ा मान देते हैं
तो कभी हमारी मूर्तियों की आड़ लेकर
हमें अपमानित उपेक्षित, खंडित कर रुला रहे हैं,
मेरे मन की पीड़ा भला वो लोग क्या जाने?
जो मुझे सूकून से रामधुन भी नहीं गाने दे रहे हैं।
राष्ट्रपिता की आड़ में बापू की आत्मा को रुला रहे हैं
अफसोस तो इस बात का है
कि हमसे राष्ट्रपिता का तमगा छीन भी नहीं रहे हैं,
और हमें धरती और यमलोक के बीच
फुटबॉल बना कर खेल खेल रहे हैं।
पहले हमको मारकर यमलोक भेज दिया
अब लगता है, यहाँ भी हमें मारने का
नया षड्यंत्र रचे जा रहे हैं,
राष्ट्रपिता होने का यह कैसा सिला दिया जा रहा है?
मेरी पीड़ा को हर दिन कुरेद- कुरेदकर
कौन सा नया इतिहास लिखा जा रहा है?
इतना कहकर यमराज खुद रोने लगा
यमराज के मुँह से बापू की पीड़ा सुनकर
मैं भी द्रवित हो गया
और हाथ जोड़ कर बापू की आत्मा की शांति के लिए
मौन प्रार्थना और मोक्ष की कामना करने में लगा,
उनकी आत्मा के दर्द को महसूस कर सोचने लगा
क्या सचमुच बापू को राष्ट्रपिता की ओट में
इस कदर छला जा रहा है?
उनकी आत्मा को आज भी छलनी किया जा रहा है
बेचारे गाँधी जी की आत्मा का अपमान कर
राष्ट्रपिता होने का ये कैसा अन्याय किया जा रहा है?

सुधीर श्रीवास्तव

Hindi Poem by Sudhir Srivastava : 112001647
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now