यमराज चालीसा
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-: दोहा :-
बात हमारी तुम सुनो, मेरे प्रिय यमराज।
आओ मिलकर हम करें, इस दुनिया पर राज।।
-: चौपाई :-
मित्र राज यमराज हमारे। तुम लगते हो सबसे प्यारे।।१
इसका राज न कोई जाने। बेवकूफ मुझको सब माने।।२
मुझे फर्क पड़ता न कोई। अच्छा है ये किस्सा गोई।।३
जैसे चलता चलने देना। हमें किसी से क्या है लेना।।४
आखिर तुमसे डरना कैसा। माँग रहे क्या उनसे पैसा।।५
मृत्यु देव तुम माने जाते। आप नरक अधिपति कहलाते।।६
भैंसा वाहन चढ़कर चलते। गदा,पाश को धारण करते।।७
लाल वस्त्र तुम धारण करते। सब प्राणी जन तुमसे डरते।।८
पिता तुम्हारे सूर्य कहाते। अरु संज्ञा तेरी हैं माते।।९
अवतारी तुम धर्म कहाते।मृत्यु नियम पालन करवाते।।१०
तुम निवास यमलोक में करते। पितृलोक भी जिसको कहते।।११
तुम्हें नरक का राजा मानें।न्याय धीश मृत आत्मा जानें।।१२
कर्म लेख सबका रखवाते। स्वर्ग-नरक सबको पहुँचाते।।१३
पुनर्जन्म की माया रचते। प्राणी जिसको कहाँ समझते।।१४
जो जन जैसा कर्म है करता।उसको वैसा फल है मिलता।।१५
चित्रगुप्त जी जैसा लिखते। अक्षरश: तुम पालन करते।।१६
कोई नाम नहीं लेता है। प्राणी तुमसे बस डरता है।।१७
इतना भी वो नहीं समझता। अंतिम साथी तू ही बनता।।१८
इसमें दोषी किसको माने।सबके अपने राग तराने।।१९
कोई तुमको ना पहचाने। पर अपराधी पहले माने।।२०
सबकी अपनी-अपनी लीला। यम लीला से पड़ता पीला।।२१
कर्म -धर्म की ये दुनिया है। हर प्राणी बनता गुनिया है।।२२
नहीं मित्रता तुमसे करता। दूरी जाने क्यों है रखता।।२३
सबके प्राण समय पर हरते । भेद-भाव तुम कभी न करते।।२४
तुम कब इसकी चिंता करते। मस्त मगन अपने में रहते।।२५
नहीं शिकायत किसी की करते। मर्यादा में खुद को रखते।।२६
नियम धर्म का पालन करते। आप किसी से कभी न डरते।।२७
यूँ तो भूल चूक ना करते। समय मान उसका भी रखते।।२८
कभी आप न आलस करते। काम नियम से निश्चित करते।।२९
समय काल की फ़िक्र न करते। अपना भेद छुपाकर रखते।।३०
आवभगत कोई नहिं करता। अंतिम साथी यम से डरता।।३१
नहीं चाहता यम की बाँहें, भले कठिन जीवन की राहें।।३२
जो प्राणी तुमको है ध्याता। अंत समय में वो मुस्काता।।३३
नाहक तुमसे जो नहिं डरता। अंत समय में हँसता रहता।।३४
महिमा यम की जिसने जानी।कहती दुनिया उसको ज्ञानी।।३५
अद्भुत अनुपम आप कहानी। चाह रहा मैं जिसे सुनानी।।३६
जो जन यम का आदर करता। कभी नहीं वो किसी से डरता।।३७
सुख-दुख में सम भावी रहता। कभी नहीं असमय वो ढहता।।३८
शीश चरण निज आप झुकाता। कहता जो है आप विधाता।।३९
जो भी दिल में तुम्हें बसाता।संग आपके सदा सुहाता।।४०
-: दोहा :-
जय जय श्री यमदेव जी, करो जगत उद्धार।
आप क्षमा करते रहो, मम अनुचित व्यवहार।।
हाथ जोड़ विनती करुँ, सदा झुकाऊं माथ।
बस इतनी सी चाह है, रहें आप मम साथ।।
।। इति यमराज चालीसा सम्पूर्णम्।।
सुधीर श्रीवास्तव