यमराज का चक्रव्यूह
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आज पहली बार यमराज का व्हाट्स एप मैसेज आया,
जिसे देख मैं चकराया
आखिर उसे मुझ पर इतना प्यार क्यों आया?
सुनकर आप भी चौंक जाएंगे
और कहेंगे इसमें क्या खास बात है भाया?
बस इसी बात से तो मैं घबराया।
अरे आज का मेरा दिन बीतने पर
बधाई देने का विचार उसके मन में क्यों आया?
दिन तो कल तक भी एक -एक दिन बीत ही रहा था
पर आज का दिन बीतने के साथ
मैंने कौन सा इतिहास मैंने रचाया।
मैंने फोन घुमाया, यमराज को बुलाया
उसने सुप्रभात कहकर अभी आने में
अपनी असमर्थता जताया
और कहने लगा प्रभु! परेशान मत हो
मैं तो आपको बता रहा था
कि आपके यमलोक आने का समय
एक और दिन करीब आ गया,
मैंने सोचा आपको पहले ही बता दूँ?
इशारे से ही थोड़ा सचेत कर दूँ,
यार हूँ तो कम से कम यारी निभा दूँ।
मुझे क्या पता था आप समझ ही नहीं पा रहे हैं
दस- बीस दिन को अपने एक से दिन जोड़ रहे हैं।
मुझे गुस्सा आ गया - तू मुझे बेवकूफ समझता है
मेरे ज्ञान पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रहा है,
तुझे बड़ी जल्दी है, तो अपना कोई चेला भेज दें
हर दिन को दस-दस दिन के हिसाब से जोड़ ले।
यमराज गिड़गिड़ाया - न प्रभु ऐसा नहीं हो सकता
अभी तो यहाँ सब कुछ अस्त-व्यस्त है
आपके बंगले की सिर्फ दीवार ही बन सकी है,
ऊपर से बजट की भी थोड़ी कमी है,
अब ऐसे में आपको कहाँ रखूंगा ?
जनता निवास में आपको थोड़े ही रहने दूँगा।
धरती लोक का उसूल यहाँ नहीं है
हम अपने यार को पूरा सम्मान देते हैं
उसे हर तरह की खुली छूट देते हैं।
उसकी हर ख्वाहिश पूरी करते हैं
उसके लिए पूरा वीआईपी इंतजाम करते हैं।
मेरे चेले भी उसी व्यवस्था में लगे हैं
हर छोटी-बड़ी चीज पर पैनी नजर रखे हुए हैं
बेचारे दिन रात लगे हैं
आपके आगमन की खुशी में दुबले हुए जा रहे हैं।
तो मुझे भी बता मुझे कब ले चलेगा?
या अभी और मूँग दलेगा?
न प्रभु! अभी कुछ कह नहीं सकता
अभी आपको लाने का उचित प्रबंध नहीं कर सकता।
एक साथ सदस्यीय कमेटी गठित कर दी है
अभी तो वहीं तिथि को लेकर जूतम पैजार मची है
किसी को जल्दी पड़ी है, तो कोई समय देना चाहता है
दो तो अभी बुलाकर आपकी कविता सुनना चाहता है
और तुरंत वापस भेज देना चाहता है,
एक आपको वाकई ओवर देकर
आपसे धरा पर आकर आपके साथ
एकाध हफ्ते रहना चाहता है।
मैंने बीच में उसे रोक कर कहा -
सच-सच बता तू क्या चाहता है?
यमराज शरमाते हुए बोला - प्रभु आप सब जानते हैं
दावत खिलाएं बिना आप कब मानते हैं,
पर इस बार आपको मुश्किल होगी
भौजाई की गालियां आपको मिलेंगी
क्योंकि इस बार मैं अकेला नहीं
मेरी फौज भी मेरे साथ होगी,
मुफ्त की दावत का आनंद लेगी।
इतना कहकर उसने फोन काट दिया
और मुझे चक्रव्यूह में फँसा दिया,
बड़ा होशियार समझता था मैं खुद को
उसने तो बड़े प्यार मुझे ही चारो खाने चित्त कर दिया
यार होने का पूरा अधिकार जता दिया।
सुधीर श्रीवास्तव