हास्य - यमलोक रत्न सम्मान
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सुबह-सुबह मित्र यमराज का आगमन हुआ
उसे देखते ही मैं जल - भुन गया,
क्योंकि मेरे तो चाय का खर्च बढ़ गया।
पर मैं भी आदत से मजबूर था
वैसे भी इस दुनिया ही नहीं, उस दुनिया में भी
वो ही तो मेरा सबसे प्यारा यार है,
ईमानदारी से कहूँ तो यमराज ही सबसे बड़ा दुश्मन
और सबसे नजदीकी रिश्तेदार भी है।
मगर ठहरिए! मेरे बारे में आप जो धारणा बना रहे हैं
बेहिचक उस पर अटल रहिए
मगर मेरे यार के खिलाफ एक भी शब्द
कहने से पहले सौ बार सोच विचार कर लीजिए।
मैं सब कुछ सह लूँगा
पर अपने यार के अपमान का मुँहतोड़ जवाब दूँगा,
आपसे मेरा रिश्ता क्या है? या कितने करीब का है
यह सब मैं भूल जाऊँगा?
और हाँ! मुझे धमकाने की तो सोचना भी मत
क्योंकि आपके काँधे पर मैं श्मशान भी नहीं जाऊँगा,
आपकी जानकारी के लिए पहले ही बता दूँ
कि यमलोकी आत्माओं के कँधे पर चढ़कर
सशरीर यमलोक चला जाऊँगा।
सोचता था आपको यमराज के आने का कारण बताऊँगा
पर आप लोग तो इस लायक हो ही नहीं
कि अपने यार की तारीफ कर
आपको अपना दोस्त बनाऊँ।
अरे यार कुछ तो शर्म करो, और घर जाओ
ताकि मैं अपने मित्र को अब चाय पिलाऊँ, नाश्ता कराऊँ,
इतना बेवकूफ नहीं हूँ मैं
कि मित्र की आड़ में आप सबको भी चाय पिलाऊँ,
नाश्ता कराऊँ और नाहक अपना खर्चा बढ़ाऊँ।
इतना ही नहीं, कल को यमलोक में भी
तुम्हारे लिए वीआईपी व्यवस्था का जुगाड़ लगाऊँ,
और यार यमराज की गालियाँ खाऊँ,
बदले में तुम सबसे बेवकूफी का भारत रत्न तो नहीं
यमलोक रत्न का सम्मान पा, अपना सिर खुजाऊँ,
और सचमुच का बेवकूफ कहलाऊँ।
सुधीर श्रीवास्तव