Hindi Quote in Poem by Sudhir Srivastava

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नवरात्रि विशेष
यमराज की फरियाद - जन-मन का उद्धार
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आज सुबह मित्र यमराज ने मुझसे पूछा -
प्रभु! क्या आप भी नवरात्रि में कुछ पूजा पाठ
और देवी माँ के नाम पर व्रत-उपवास करते हो?
मैंने भी उत्तर दिया - सवाल पूछने का यह कैसा समय है?
जब प्रश्न पत्र बँट गया तब तुम पूछ रहे हो
कि आज किस विषय का प्रश्न पत्र मिला है।
तू मेरा यार है, इसलिए बता दें रहा हूँ,
एहसान मान, पूरी ईमानदारी से सच बोलने जा रहा हूँ,
पूजा -पाठ, व्रत- उपवास मैं नहीं करता
बस! देवी माँ को मन ही मन याद कर लेता हूँ,
और ठूँस- ठूँसकर अपना पेट भरता हूँ।
यमराज नाराज हो कहने लगा
बड़े बेशर्म हो यार-
तुम तो देवी माँ का भी अपमान करते हो
ठूँस-ठूँसकर खाने के प्रोग्राम को
दस दिन विराम भी नहीं दे सकते हो
मैंने उसे प्यार से समझाया - तू गलत सोच रहा है यार
मैं दिखावा बिल्कुल नहीं कर सकता
पूजा-पाठ, व्रत- उपवास का छलावा नहीं करता
महज नवरात्रि में ही बड़ा पाक- साफ
और देवी भक्त दिखने-दिखाने का स्वाँग नहीं रचता,
जैसा भी हूँ, वैसा ही रोज दिखने का प्रयत्न करता हूँ।
अपने मन-वचन-कर्म से ईमानदार रहता हूँ
किसी का अपमान नहीं करता,
मानव धर्म का नित्य पाठ करता हूँ
माँ-बाप का मान- सम्मान करता हूँ
यथासंभव सेवा सत्कार करता हूँ।
किसी का हक भी नहीं मारता हूँ
ईमानदारी से जीने की पूरी कोशिश करता हूँ,
बहन-बेटियों को पूरा मान-सम्मान देता हूँ।
तेरी नज़र में भले ही मैं अपराध करता हूँ
तू कहे तो अपना अपराध भी मान लेता हूँ,
पर देवी माँ की नजरों में गिरने का
कोई भी काम नहीं करता हूँ,
सिर्फ नंबर बढ़वाने वाला काम करने का
तनिक विचार भी नहीं करता हूँ,
माँ-बाप, बड़े-बुजुर्गों ही नहीं
जगत जननी माँ के भी करीब रहता हूँ।
अपना मन पाक-साफ रखता हूँ,
खुद को देवी माँ का बड़ा भक्त समझता हूँ,
अब तू बता! क्या मैं कोई गुनाह करता हूँ?
यमराज सिर खुजाते हुए बोला -
यार! तू तो ज्ञानी बन ज्ञान देने लगा
संतों महात्माओं की तरह प्रवचन करने लगा।
पर तेरे प्रवचन से मुझे कोई मतलब नहीं है,
लगता है कि नवरात्रि में मेरे खाने पीने का
तेरे पास कोई इंतजाम ही नहीं है।
वैसे तू कह तो ठीक ही रहा है,
पर देवी माँ के लिए इसका कोई प्रोटोकॉल ही नहीं है।
जो जैसा चाहे करे , न करे, कम या ज्यादा करें
सबका अपना -अपना विवेकाधिकार है।
फिलहाल तो अपना प्रश्न वापस लेकर
इस वार्तालाप को विराम देता हूँ,
देवी माँ के मंदिर जाकर
माथा टेकने के बाद अपने काम पर निकलता हूँ,
देवी माँ हम दोनों का कल्याण बाद में करें
पहले जन-मन के उद्धार की फरियाद करता हूँ,
जय माता दी, जय माता दी का जयकारा लगाने की
सभी से हाथ जोड़कर अनुरोध करता हूँ,
अपने यार की कसम अपना हर अपराध स्वीकार कर
आप सबको प्रणाम कर अब विदा लेता हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव

Hindi Poem by Sudhir Srivastava : 112000980
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