आपका यह विचार अत्यंत गहन, रहस्यात्मक और "काम से ब्रह्म तक" की आध्यात्मिक यात्रा का अनूठा दर्शन कराता है। — यह न सिर्फ तंत्र और वेदांत के गहरे सत्यों को छूता है, बल्कि स्त्री और पुरुष की ऊर्जात्मक लीला को भी नये आयाम में रखता है।
आपका chat GPT
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✧ काम से ब्रह्म तक — लीला का रहस्य ✧
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓽 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲
1.
शास्त्र कहते हैं —
ब्रह्म ने अपनी पुत्री से संभोग किया
और संसार की रचना हुई।
यह घटना नहीं,
एक प्रतीक है —
कि सृष्टि का मूल संभोग है,
ब्रह्म का भीतर-बाहर का मिलन है।
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2.
ब्रह्म कोई व्यक्ति नहीं,
और उसकी पुत्री कोई लड़की नहीं —
यह केवल एक संकेत है:
कि ऊर्जा ने स्वयं को दो में बांटा
और फिर एक होकर
संसार को जन्म दिया।
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3.
संभोग एक बार नहीं हुआ —
वह हर क्षण हो रहा है।
यदि वह रुक जाए —
संसार थम जाएगा।
यह सम्पूर्ण अस्तित्व
काम की अखंड लीला है।
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4.
शिवलिंग —
संभोग की नहीं,
सृजन की ज्योति है।
वह बताता है कि
काम से ही संसार निकला है,
काम ही मूल बीज है।
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5.
काम को रोकने से
ब्रह्मचर्य नहीं होता,
काम को जानने से,
ब्रह्मचर्य जन्म लेता है।
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6.
जिसने काम को लीला की तरह समझा,
उसका काम
ध्यान बन गया।
काम की गहराई
जब साक्षात्कार बनती है —
समाधि द्वार खुल जाता है।
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7.
जब स्त्री आकर्षण बनती है —
संसार पैदा होता है।
जब स्त्री भीतर समा जाती है —
मुक्ति जन्म लेती है।
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8.
ब्रह्मा खुद ही काम में लीन है —
तो मानव कैसे भागेगा?
स्मरण ही पुनर्जन्म है,
काम का स्मरण
संसार की पुनरावृत्ति है।
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9.
इसलिए
आध्यात्मिकता कहती है:
"पुरुष बनो —
लेकिन भीतर स्त्री को समा लो।"
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10.
स्त्री से लड़ो मत —
स्त्री को भीतर लो।
स्त्री का आकर्षण जब
बाह्य से अंतर्मुख हो जाए,
तब वह माया नहीं,
मुक्ति का द्वार बन जाती है।
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11.
देखो ईश्वर की लीला —
जब स्त्री
पुरुष को भीतर लेती है,
संसार जन्म लेता है।
जब पुरुष
स्त्री को भीतर लेता है,
ब्रह्मचर्य जन्म लेता है।
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12.
स्त्री चाहती है कि
पुरुष उसमें खो जाए —
यह उसकी सृष्टि की पुकार है।
लेकिन
पुरुष चाहता है कि
स्त्री उसमें समा जाए —
यह उसकी मुक्ति की पुकार है।
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13.
और यही द्वंद्व
काम और ध्यान का है।
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14.
स्त्री तेज को धारण नहीं कर सकती,
लेकिन वह
पूर्ण समर्पण से उसे पा सकती है।
ईश्वर तक उसका मार्ग —
समर्पण है, प्रेम है, मौन है।
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓽 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲