Hindi Quote in Poem by satyendra Kumar dubey

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कविता शीर्षक: "शांत वादियों में मातम"

पहलगाम की वादियों में, बर्फ सी सफेदी घुली थी,
चिनारों की छांव तले, अमन की नर्म हवा चली थी।
पर एक दिन उन फूलों पर, बारूद की बदबू छाई,
जंगलों की शांति में, गोलियों की गूंज समाई।

नदी जो कल तक गीत गाती, आज खून से भीग गई,
धरती माँ की छाती फिर, निर्दोष लहू से सील गई।
मासूम आँखें ढूँढ रही थीं, उम्मीदों का कोई किनारा,
पर जुल्म की काली रातों ने, उजालों को भी किया किनारा।

जो बच्चे कल तितली पकड़ते, अब ताबूत में सोए हैं,
उनकी माँओं के आँचल से, सारे रंग भी खोए हैं।
सैनिक का लहू भी बोला — "मैं मिटा तो गया मगर,
मिटा न सका ये ज़हर, जो दिलों में बोता डर।"

शब्द भी रो पड़े आज, कलम थरथराई है,
वो घाटी जहाँ कभी प्रेम था, आज सिसकियाँ समाई हैं।
लेकिन याद रखो ओ आतंक, यह वादी झुकेगी नहीं,
हर आँसू की चिंगारी से, एक नई सुबह फूटेगी यहीं।

Hindi Poem by satyendra Kumar dubey : 111977117
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