तुमने रच दी मधुशाला की गाथा,
जहाँ हर घूँट में बसी थी परिभाषा।
संसार को सिखाया तुमने यह पाठ,
“जीवन है मधु, दुख-सुख के साथ।”
तुम थे शब्दों के साधक, अद्भुत शिल्पकार,
भावनाओं को दिया तुमने अमर आकार।
तुम्हारी लेखनी में झलका जो प्रकाश,
वो मिटा गया हर हृदय का अंधकार।
“निशा निमंत्रण” में रात्रि का श्रृंगार,
“सतरंगिनी” में सजी जीवन की धार।
तुम्हारी कविता, जैसे गंगा की धार,
हर मन को कर दे पवित्र, अपार।
तुमने कहा, "अग्निपथ मत छोड़ना,
हर बाधा को ठोकर में मोड़ना।"
तुम्हारे शब्दों में संघर्ष की पुकार,
हर युवा के लिए बने जीवन का आधार।
तुम केवल कवि नहीं, एक युग थे,
हरिवंश जी, तुम साहित्य के भुजंग थे।
तुम्हारे बिना अधूरा है हिंदी का जहाँ।
श्रद्धा के दीप आज जलाते हैं,
तुम्हारे चरणों में शीश झुकाते हैं।
तुम अमर हो, अमर रहोगे हरिवंश,
तुम्हारे शब्दों से जीवित रहेगा सारा ब्रह्मांश। - जतिन त्यागी