सुदर्शन फ़ाकिर की ग़ज़ल "किसी रंजिश को हवा दो" बहुत ही गहरी और भावुक है। इसे हास्य में बदलना एक दिलचस्प चुनौती है। यहाँ एक हास्य कविता है जो life certificate के संदर्भ में है:
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किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी,
मुझको एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी।
बैंक की लाइन में खड़ा हूँ, ये सबूत है मेरा,
लाइफ सर्टिफिकेट बनवाने आया हूँ अभी।
कागजों की इस दुनिया में, मैं भी हूँ एक सितारा,
सरकारी बाबू को दिखा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी।
फॉर्म भरते-भरते थक गया हूँ, पर हिम्मत नहीं हारी,
अब तो साइन करवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी।
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी,
मुझको एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी।
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उम्मीद है कि यह कविता आपको पसंद आई होगी! 😊