वह जीवन है क्या,
जो दूसरों पर न्योछावर ना किया,
वह मानव ही क्या,
जो सिर्फ खुद के लिए जिया।
वो तकदीर ही क्या,
जो दूसरों के काम न आई।
वो मेहनत ही क्या,
जिस से की सिर्फ अपने लिए कमाई।
वो धन ही क्या,
जो खर्च सिर्फ खुद पर किया।
वो मन ही क्या,
जिसमें न हो औरों के प्रति दया।
वो सफलता ही क्या,
जिस से बस खुद की हो भलाई।
वो जिंदगी ही क्या,
जो औरों पर न हो लुटाई।
खुद के लिए तो जीते हैं सब,
कभी औरों के लिए जी तो भाई।।