✍🏻...होने थे जितने खेल मुकद्दर के हो गए......

हम टूटी नाव लेकर समुन्दर के हो गए...

खुशबू हमारे हाँथ को छू कर गुजर गई..

हम फूल सबको बांटकर पत्थर के हो गए!!!

-Kushwaha Arush

Hindi Shayri by Kushwaha Arush : 111909639
New bites

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