जब आदमी ही आदमी से भेद करता था
तब आया एक भीम जो इक देव जैसा था
जिसने बताया आदमी बस आदमी होता
ना जन्म से कोई देवता ना नीच ही होता
सब है बराबर इस धरा पर सबको बतलाया
क्या ढोंग है? है सत्य क्या? यह सबको समझाया
गिरती हुई मानवता को जिसने सिखाया धर्म क्या?
जिसने जगाया नींद से और बताया कर्म क्या?
जिसने दिया सविंधान जो भारत के सिर का ताज है
जिसने सिखाया शिक्षा ही तो सुसभ्यता का राज है।
-नन्दलाल सुथार राही